बिहार के नालंदा जिले के ऐतिहासिक नगर राजगीर में स्थित है विश्व शांति स्तूप. रत्नागिरी पर्वत की गोद में 400 मीटर की उंचाई पर स्थित शांति स्तूप के चारों ओर भगवान बुद्ध की प्रतिमाएं सुसज्जित हैं. ये चार प्रतिमाएं जीवन के चार चरणों जन्म, ज्ञान, उपदेश और मृत्यु को दर्शाती हैं. जापानी भिक्षु निचीदत्सु फूजी ने इसका निर्माण कराया था.
सफेद संगमरमर से बना, बुद्ध प्रतिमाओं और शांत वातावरण होने के कारण हर दिन हजारों पर्यटकों को आकर्षित करता है. ऊंचाई पर होने के कारण स्तूप के चारों ओर का दृश्य अत्यंत सुंदर दिखाई देता है. यह बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यंत पूजनीय स्थल है. यहां आने वाले पर्यटकों को असीम शांति का अहसास होता है. विश्व शांति स्तूप का मुख्य उद्देश्य दुनिया में शांति और समृद्धि को बढ़ावा देना है. राजगीर बौद्ध धर्म का एक प्रमुख केंद्र रहा है. यहीं पर भगवान बुद्ध ने अपने जीवन का अहम पल बिताया और शांकि का उपदेश दिया.
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जापानी बौद्ध भिक्षु निचीदत्सु फूजी ने निप्पोनजन म्योहोजी नामक आंदोलन की शुरुआत की. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, फूजी ने सोचा कि दुनिया में शांति और अहिंसा फैलाने के लिए बौद्ध धर्म की शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार करना बेहद जरूरी है. इसी विचारधारा के साथ उन्होंने विश्व के कई देशों में शांति स्तूपों का निर्माण शुरू करवाया. वर्ष 1969 में राजगीर में शांति स्तूप का निर्माण कार्य जापानी बौद्ध संप्रदाय निप्पोनजान म्योहोजी और भारत सरकार के सहयोग से हुआ. वर्ष 1965 में स्तूप का शिलान्यास राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन द्वारा किया गया और चार वर्ष बाद 1969 में राष्ट्रपति वी. वी. गिरि ने इसका औपचारिक रूप उद्घाटन किया.
शांति स्तूप की खासियत
शांति स्तूप की सबसे बड़ी खासियत है कि यह भारत का पहला शांति स्तूप है, जो बौद्ध भिक्षु निचिदात्सु फुजी के वैश्विक शांति आंदोलन के तहत बनवाया गया. शांति स्तूप की आकृति की बात करें तो यह गोलाकार है, जो भारतीय बौद्ध स्तूपों की पारंपरिक शैली को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है. यह स्तूप 400 फिट ऊंचा और लगभग 80 फिट व्यास में फैला हुआ है. इसके अंदर कोई दीवार या छत नहीं है. स्तूप के चारों दिशाओं में भगवान बुद्ध की चार स्वर्णिम प्रतिमाएं स्थापित हैं.

शिखर पर सुनहरा कलश
शांति स्तूप के शीर्ष पर सुनहरा कलश और ध्वजाकार शिखरबिंदु लगाया गया है. यह बौद्ध धर्म के ‘निर्वाण’ की अवस्था का सूचक है- जहां आत्मा अंतिम मुक्ति प्राप्त करती है. इसके शिखर पर एक छोटा सा छिद्र (खिड़की) है, जहां से सूर्य की रोशनी प्रवेश करती है. यह छिद्र बौद्ध धर्म के सिद्धांतों का प्रतीक है.
रोपवे की सुविधा
शांति स्तूप ऊंचाई पर होने के कारण, वहां तक पहुंचने के लिए रोपवे की सुविधा उपलब्ध है. यहां दो तरह की रोपवे हैं, सिंगल सीटर के लिए 100 रुपये किराया है , वहीं आठ सीटर के लिए 120 रुपये देने होते है. रोपवे से यात्रा करते समय की घाटियां, पहाड़ और जंगलों का दृश्य बेहद आकर्षक लगता है. वहीं, दूसरी ओर पैदल जाने के लिए सीढ़ियां भी बनाई गई हैं. हालांकि स्तूप तक पहुंचने में एक घंटे का समय लगता है. सीढ़ियों से ऊपर जाने के बजाय पैदल नीचे आना सही रहता है.
जापानी स्थापत्य कला और भारतीय संस्कृती संगम
शांति स्तूप की वास्तुकला का निर्माण जापानी शैली के साथ-साथ भारतीय संस्कृती तत्वों से किया गया है. सफेद संगमरमर की चिकनी सतह, स्वर्णिम प्रतिमाएं और शांत वातावरण इसे खास बनाता है. पास में ही भगवान बु्द्ध का प्रिय स्थल गृद्धकूट है. यहां आने वाले हर पर्यटक गृद्धकूट भी जरूर जाना पसंद करते हैं.
कहां-कहां से आते हैं पर्यटक?
राजगीर शांति स्तूप घूमने भारत और विदेशों से भी बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं. भारत के बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और दिल्ली से कई लोग यहां घूमने आते हैं. इसके अलावा विदेशों से जैसे नेपाल, जापान, श्रीलंका, थाईलैंड, म्यांमार, तिब्बत, भूटान, चीन, दक्षिण कोरिया, वियतनाम और पश्चिमी देशों से भी बड़ी संख्या में सैलानी यहां आते हैं.
कैसे पहुंचे शांति स्तूप?
राजगीर शांति स्तूप नालंदा जिले में स्थित है. यहां पहुंचने के लिए रेल, सड़क और हवाई मार्ग तीनों सुविधा उपलब्ध हैं. हवाई मार्ग के लिए पटना में जयप्रकाश नारायण अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है. पटना से राजगीर लगभग 100 किलोमीटर दूरी पर है. पटना से टैक्सी, कैब या बस के जरिए 2-3 घंटे में राजगीर पहुंचा जा सकता है. रेल मार्ग के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन राजगीर रेलवे स्टेशन है. यहां से ऑटो रिक्शा या टैक्सी लेकर 20-25 मिनट में आसानी से पहुंचा जा सकता है.