राजधानी पटना का नाम सुनते ही हमारे जहन में गोलघर की तस्वीर दिखाई देने लगती है. गंगा नदी के किनारे स्थित गोलघर अपने अद्भुत वास्तुशिल्प, ऐतिहासिक महत्त्व और सांस्कृतिक धरोहर के लिए लोकप्रिय है. गोलघर को 239 साल पहले ब्रिटिश काल के दौरान बनाया गया था. सैलानी जब भी बिहार आते हैं, तो वह निश्चित तौर पर गोलघर देखना पसंद करते हैं. ऐसा कहा जाता है अगर आप पटना आए और गोलघर नहीं देखा तो पटना ही नहीं देखा. गोलघर को बनाने के लिए किसी पिलर का इस्तेमाल नहीं किया गया है.
अनाज भंडारण के लिए बनाया गया था गोलघर
गोलघर का निर्माण कैप्टन जॉन गारस्टिन ने 1786 में ब्रिटिश सेना के लिए बनाया गया था. इसको बनाने का खास उद्देश्य अनाज भंडारण था. साल 1770 के दौरान देशभर में भयंकर सूखा पड़ा. जिसमें लगभग 10 लाख से अधिक लोगों की मृत्यु हो गई थी. इस स्थिति से निपटने के लिए ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने भंडारण व्यवस्था करने का निर्णय लिया. इसके बाद फौरन ही गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग ने पटना में गोलघर बनाने का आदेश दिया.
साल 1786 में गोलघर अनाज के भंडारण के लिए बनकर पूरा हो गया. गोलघर में 1,40,000 टन अनाज को रखा जा सकता है. आजादी से लेकर साल 1999 तक यह इमारत अनाज भंडारण के लिए उपयोग किया जाता था, लेकिन बाद में इसे बंद कर दिया गया.
गोलघर की बनावट
गोलघर, जो नाम सुनकर ही यह पता चल जाता है कि इसकी आकृति गोलाकार है, इसे ईंट और चूने से निर्मित किया गया है. इसकी दीवारें करीब 3.6 मीटर मोटी और ऊंचाई लगभग 29 मीटर (96 फीट) है. बाहरी दीवार पर 145 घुमावदार सीढ़ियों की दोहरी कतार है. सीढ़ीयां ऐसे बनाई गई हैं कि एक ओर से चढ़ा और दूसरी ओर से उतरा जा सके. ऐसा इसलिए बनाया गया है क्योंकि अनाज ले जाने वाले मजदूर आसानी से ऊपर-नीचे आ-जा सकें.
छत तक पहुंचने पर वहां से पटना शहर और गंगा नदी का अद्भुत दृष्य दिखाई देता है. गोलघर के शिखर पर छिद्र बनाया गया था, जिससे अंदर अनाज डाला जाता था. वर्तमान में छिद्र को बंद कर दिया गया हैं, और इसे पर्यटन स्थल के रूप में अब देखा जाता है. इसके आस-पास पार्क बनाया गया है, बच्चों के लिए झुले भी लगाए गए हैं.
गोलघर परिसर में नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री और प्रख्यात जननेता बिश्वेश्वर प्रसाद (बी. पी.) कोईराला की मूर्ति स्थापित की गई है. बी. पी. कोईराला का बिहार राज्य, विशेषकर पटना में लंबे समय तक सक्रिय रहा था. उन्होंने अपने राजनीतिक निर्वासन के बाद बिहार में रहने लगे थे. कई वर्षों तक बिहार में रहकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी रही थी. यह मूर्ति भारत-नेपाल के ऐतिहासिक संबंधों का प्रतीक माना जाता है.
गोलघर में दिखाया जाता था लेजर शो
बिहार सरकार ने पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए 2017 में लेजर शो की शुरुआत की थी. शो लगभग 25-30 मिनट का होता है और इसमें अत्याधुनिक साउंड सिस्टम, थ्री-डी ग्राफिक्स और रंगीन लेजर बीम की व्यवस्था की गई थी. इस शो में मुख्यतः बिहार की गौरवशाली ऐतिहासिक धरोहर जैसे नालंदा, विक्रमशिला विश्वविद्यालय, मगध साम्राज्य, चंद्रगुप्त मौर्य, सम्राट अशोक, बोधगया, बिहार के लोक जीवन, कला, संस्कृति, स्वतंत्रता आंदोलन और आधुनिक बिहार की झलकियां दिखाई जाती थी. इसके जरिए गोलघर के निर्माण का इतिहास ही नहीं, बल्कि पूरे राज्य की सांस्कृतिक विरासत से भी परिचय कराया जाता था. हालांकि कोविड-19 महामारी के कारण लेज़र शो अस्थायी रूप से बंद कर दिया गया.
कैसे पहुंचे गोलघर?
गोलघर पहुंचले के लिए पर्यटक रेल, हवाई और सड़क मार्ग का उपयोग कर सकते हैं. रेल मार्ग के लिए सबसे नजदीक रेलवे स्टेशन पटना जंक्शन है, जो गोलघर से मात्र 2 किलोमीटर दूर स्थित है. हवाई मार्ग के लिए गोलघर से 7 किलोमीटर दूर जयप्रकाश नारायण अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा उतरना होगा. इसके बाहर टैक्सी, कैब, ऑटो-रिक्शा और बस की सुविधा है.