मातृत्व की भावाना को सम्मान देने और उसे सेलिब्रेट करने के लिए हर साल 11 अप्रैल को राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस के रूप में मनाया जाता है. गर्भावस्था किसी भी महिला के लिए सबसे नाजुक समय होता है, जहां उसे खुद का ख्याल रखने की सबसे अधिक जरूरत होती है. ऐसे में जहां एक तरफ शरीर को लगातार पोषण देते रहना होता है तो वहीं लाइफस्टाइल में भी बदलाव करने होते हैं, मगर भारत में ज्यादातर महिलाएं अपनी सेहत का ध्यान नहीं रखती हैं. ऐसे में इस खास विषय के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए ही हर साल इस दिन को सुरक्षित मातृत्व दिवस के लिए मनाया जाता है.
राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस का इतिहास
इस दिन के इतिहास को देखें तो व्हाइट रिबन एलायंस इंडिया (White Ribbon Alliance India) के सुझाव और अनुरोधों के बाद साल 2003 से इसकी शुरुआत हुई थी. वहीं साल 1987 में WHO ने सुरक्षित मातृत्व की पहल के लिए इस डेट को चुना था. तभी से हर साल एक खास थीम के साथ इस दिन को मनाने की परंपरा चली आ रही है.
राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस को मनाने के उद्देश्य
इस विशेष दिन को मनाने के पीछे का उद्देश्य प्रेग्नेंट महिलाओं को जागरूक करना है तो वहीं नवजातों की देखभाल की जानकारी देकर मातृ और नवजात शिशु दर को कम करना भी है. साथ ही प्रेग्नेंसी और डिलीवरी के बाद सही पोषण के महत्व को भी लोगों तक पहुंचाना है. इसके लिए हर साल शहर, गांव और कस्बों में मेडिकल की टीमें जाकर गर्भवती महिलाओं को सही जानकारी भी देती हैं.
राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस की थीम
बता दें कि हर साल मातृत्व के महत्व से जुड़े इस दिन को एक खास थीम के साथ सेलिब्रेट किया जाता है, ताकि उससे जुड़ी जानकारी भी लोगों तक पहुंचती रहे. इस साल की थीम ‘मातृ स्वास्थ्य देखभाल में समानता’ (Ensuring Equity in Maternal Healthcare) रखी गई है.
भारत की स्थिति
भारत में मातृत्व और शिशुओं की स्थिति को देखें तो यहां के मामले संतोषजनक नहीं हैं. यहां शिशु मृत्यु दर और डिलीवरी के दौरान महिलाओं की मृत्युदर की स्थिति भी नाजुक है. 2023 के आंकड़ों के अनुसार शिशु मृत्यु दर प्रति 1000 जीवित जन्मों पर 26.169 है. वहीं 12 प्रतिशत महिलाओं की मौत गर्भावस्था, प्रसव और प्रसव के बाद हो जाती है. हालांकि बीते सालों की तुलना में इसमें गिरावट आई है, मगर इस दिशा में और अधिक काम करने की जरूरत है ताकि इसे कम किया जा सके.