आज देश की सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी का स्थापना दिवस है. वर्ष 1980 में 6 अप्रैल को ही भाजपा की स्थापना हुई थी. भाजपा के स्थापना दिवस के दिन भारतीय जनता पार्टी के पहले अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी ने पार्टी की स्थापना के समय कहा था, “अंधेरा छटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा “. उस समय वाजपेयी जी ने ये शब्द भले ही पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने के लिए कहा होगा लेकिन आज ये शब्द बीजेपी की बहुमत की सरकार के रुप में साकार होती दिखाई दे रही है. उस समय जो पौधा रोपा गया, तब शायद ही किसी ने यह सोचा कि कुछ वर्षों बाद यह इतने बड़े पेड़ का रूप ले लेगा.
आज आलम ये है कि 2024 के आगामी लोकसभा चुनाव में बीजेपी 370 और एनडीए गठबंधन 400 से अधिक सीटों पर जीत का दावा कर रहा है. यह कहानी भारतीय जनसंघ की स्थापना से शुरू होती है. महात्मा गांधी की हत्या होने के बाद श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने हिंदू महासभा से इस्तीफा दे दिया था. उन्होंने संघ के सहयोग से 21 अक्तूबर 1951 को भारतीय जनसंघ यानी बीजेएस का गठन किया. कुछ समय बाद कश्मीर की जेल में मुखर्जी की मौत हो गई. इसके बाद उपाध्यक्ष चंद्रमौली शर्मा को बीजेएस का अध्यक्ष बनाया गया. उनके बाद प्रेमचंद्र डोगरा, आचार्य डीपी घोष, पीताम्बर दास, ए रामाराव, रघु वीरा, बच्छरास व्यास ने जनसंघ की कमान संभाली. वर्ष 1966 में बलराज मधोक और 1967 में दीनदयाल उपाध्याय अध्यक्ष बने. फिर 1972 तक अटल बिहारी बाजपेयी और 1977 तक लाल कृष्ण आडवाणी अध्यक्ष पद पर आसीन रहे.
वर्ष 1977 में भारतीय जनसंघ का अस्तित्व खत्म कर दिया गया. दरअसल, उस समय देश में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी थी. ऐसे में जनता पार्टी की सरकार में शामिल करने के लिए शर्त रखी गई. जिसके बाद जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हो गया. जनता पार्टी सरकार में जनसंघ की तरफ से आडवाणी सूचना प्रसारण मंत्री बने थे तो वहीं अटल बिहारी बाजपेयी विदेश मंत्री बनाए गए थे. लेकिन, कुछ समय बाद ही आपसी खींचतान के चलते 1979 में मोरारजी देसाई की सरकार गिर गई. इस स्थिति में जनता पार्टी के संघी नेताओं को नया प्लेटफॉर्म बनाने की जरूरत महसूस हुई. इस तरह, 6 अप्रैल 1980 को मुंबई में एक नई राजनैतिक पार्टी की स्थापना हुई, जिसका नाम भारतीय जनता पार्टी BJP रखा गया. स्थापना के लिए इस तारीख को इसलिए चुना गया क्योंकि 6 अप्रैल 1930 को महात्मा गांधी ने डांडी यात्रा के बाद नमक बनाकर काला कानून तोड़ा था.
1984 के चुनाव में भाजपा को 2 सीटों पर मिली जीत
1984 में इंदिरा गांधी की हत्या हो गई. ऐसे में सुहानुभूति लहर के चलते कांग्रेस को 400 से ज्यादा सीटें मिलीं और राजीव गांधी प्रधानमंत्री बन गए. बीजेपी के खाते में केवल 2 सीटें आईं. इसमें एक सांसद गुजरात के मेहसाणा से एके पटेल और दूसरे आंध्र प्रदेश की हनामकोंडा से चंदू भाई पाटिया जंगारेड्डी लोकसभा सासंद चुने गए.
1989 में लोकसभा चुनाव में 85 सीटों पर जीत के बाद बढ़त जारी
1980 से 6 वर्ष तक वाजपेयी भाजपा के अध्यक्ष रहे. फिर उन्हें हटाकर लाल कृष्ण आडवाणी का चेहरा आगे लाया गया. इसके बाद जब 1989 में लोकसभा चुनाव हुआ तो बीजेपी 85 सीटें जीतने में सफल रही. इसके बाद बीजपी की बढ़त जारी रही. वर्ष 1991 में 120 लोकसभा सीटें और 1996 में 161 सीटों पर भगवा लहराया. इस तरह भाजपा पहली बार भारतीय संसद में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी. अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार बनी, मगर बहुमत नहीं होने के कारण 13 दिन बाद इस्तीफा देना पड़ा.
कैसे लगातार बढ़ता गया बीजेपी का वर्चस्व
इसके बाद संयुक्त मोर्चा की 2 सरकारों के बाद मध्यावधि चुनावों के लिए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी एनडीए का गठन हुआ. इसे लेकर शिवसेना, समता पार्टी, बीजू जनता दल, अकाली दल और एआईडीएमके से समझौता हुआ. बीजेपी को 182 सीटें हासिल हुई और वाजपेयी दूसरी बार पीएम बने. लेकिन, 13 महीने बाद बाजपेयी सरकार फिर गिर गई. इसके बाद 1999 के चुनाव में भाजपा फिर से विजयी हुई. एनडीए को 303 सीटें मिलीं. और इस बार वाजपेयी के नेतृत्व में 5 वर्ष सरकार चलाने का मौका मिला. 2004 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 138 सीटें ही मिलीं. आडवाणी की अगुवाई में 2009 में बीजेपी के हाथ 116 सीटें ही आईं. इसके बाद 2014 में 283 सीटों के साथ प्रचंड जीत से नरेंद्र मोदी ने इतिहास रच दिया. अकेले अपने दम पर भाजपा की सरकार बनी. इसके बाद 2019 के आम चुनाव में भाजपा ने 300 से ज्यादा सीट जीतकर इतिहास रच दिया. एनडीए ने 350 से ज्यादा सीटें जीतीं. अब निगाहें 400 पार पर हैं.