पटना: हस्तकरघा और बाबनबूटी साड़ी के लिए पद्मश्री सम्मानित कपिलदेव प्रसाद का बुधवार सुबह बिहारशरीफ के बसवनबिगहा गांव में निधन हो गया है. कपिलदेव प्रसाद के निधन से लोगों में शोक है.
जिला मुख्यालय बिहारशरीफ के बसवन बीघा गांव निवासी कपिल देव प्रसाद ने हस्तकरघा और बाबनबूटी साड़ी की कला को पहचान दिलायी थी. उन्होंने अपने पुश्तों से सीखे हुनर को लोगों में बांटे और इस कला को रोजगार के तौर पर विकसित किया. मशीनी कपड़ों के बाजार में बावन बूटी की जानकारी ही कम लोगों को थी लेकिन पद्मश्री पुरस्कार के साथ अब यह पूरे देश में खोजा जा रहा है.
एक तरह की बुनकर कला है. सूती या तसर के कपड़े पर हाथ से एक जैसी 52 बूटियां यानि मौटिफ टांके जाने के कारण इसे बावन बूटी कहा जाता है. बूटियों में बौद्ध धर्म-संस्कृति के प्रतीक चिह्नों की बहुत बारीक कारीगरी होती है. बावन बूटी में कमल का फूल, बोधि वृक्ष, बैल, त्रिशूल, सुनहरी मछली, धर्म का पहिया, खजाना, फूलदान, पारसोल और शंख जैसे प्रतीक चिह्न ज्यादा मिलते हैं. बावन बूटी की साड़ियां सबसे ज्यादा डिमांड में रहती हैं. कपिल देव प्रसाद के दादा शनिचर तांती ने इसकी शुरुआत की थी.
हिन्दुस्थान समाचार