देश की राजनीति पर बड़ा असर डालने वाला फैसला आज आएगा. सदन में वोट के बदले नोट लेने वाले सांसदों/ विधायकों का कानूनी संरक्षण बचेगा या जाएगा? सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की संवैधानिक पीठ आज तय करेगी कि क्या सदन में वोट के लिए रिश्वत में शामिल सांसदों/विधायकों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई से छूट दी जानी चाहिए या नहीं?
इस पर 7 जजों की बैंच – CJI डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस एमएम सुंदरेश, जस्टिस पीएस नरसिम्हा, जेबी पारदीवाला, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच इस पर फैसला सुनाएगी. इससे पहले 5 अक्टूबर 2023 को सात जजों के संविधान पीठ ने सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रखा था. मामले में दो दिनों की सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रखा गया था.
इससे पहले 20 सिंतबर को सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला आया था. फिर सदन में वोट के लिए रिश्वत में शामिल सांसदों/विधायकों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई से छूट पर फिर से विचार करने को सुप्रीम कोर्ट तैयार हो गया था. पांच जजों के संविधान पीठ ने 1998 के पी वी नरसिम्हा राव मामले में अपने फैसले पर फिर से विचार करने का फैसला लिया था. इस मामले को सात जजों के संविधान पीठ को हस्तांतरित किया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह राजनीति की नैतिकता पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालने वाला एक महत्वपूर्ण मुद्दा है. कोर्ट यह तय करेगा कि अगर सांसद या विधायक सदन में मतदान के लिए रिश्वत लेते हैं तो क्या तब भी उस पर मुकदमा नहीं चलेगा?
आपको बता दें कि 1998 का नरसिम्हा राव फैसला सांसदों को मुकदमे से छूट देता है. सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने छूट निर्धारित करने के लिए एक कार्यात्मक परीक्षण का सुझाव दिया और कहा कि यह परिणाम के डर के बिना, एक विधायक/ सासंद के कर्तव्य का निर्वहन करने के लिए आवश्यक बोलने या मतदान की छूट देता है. दरअसल अनुच्छेद 105(2) संसद सदस्यों (सांसदों) को संसद या किसी संसदीय समिति में उनके द्वारा कही गई किसी भी बात या दिए गए वोट के संबंध में अभियोजन से छूट प्रदान करता है. जबकि अनुच्छेद 194(2) विधान सभा सदस्यों (विधायकों) को समान सुरक्षा प्रदान करता है.