नासा-इसरो सिंथेटिक एपर्चर रडार यानी निसार सैटेलाइट पर जोरों से काम चल रहा है और विशेष रूप से कंपन से संबंधित परीक्षणों के बाद 2024 की पहली तिमाही में इसे लॉन्च भी कर दिया जाएगा. तो वहीं नासा निसार के प्रोजेक्ट मैनेजर फिल बरेला ने इस प्रोजेक्ट से जुड़ी बड़ी जानकारी दी है.
बिरेला ने कहा कि इस प्रोजेक्ट को इसरो द्वारा अगले साल की पहली तिमाही में लॉन्च करने का अनुमान है. उन्हें उम्मीद है कि इसरो जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल मार्क-2 के जरिए श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से निसार (जिसे ‘नाइसर’ कहा जाता है) का प्रक्षेपण जनवरी से पहले नहीं होगा. बरेला ने कहा परीक्षणों की एक पूरी शृंखला है जिसे हमें करने की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि यह सुनिश्चित करने के लिए बैटरी और सिमुलेशन परीक्षण किए जाने चाहिए कि सिस्टम ठीक काम करता है.
बता दें तीन साल की अवधि वाले इस मिशन का उद्देश्य हर 12 दिनों में पृथ्वी की सभी भूमि और बर्फ से ढकी सतहों का सर्वेक्षण करना है. यह 90 दिनों की उपग्रह कमीशनिंग अवधि के बाद शुरू होगा. जिन प्रमुख परीक्षणों को किया जाना बाकी है, उनमें सबसे अहम कंपन परीक्षण है.
नासा के जेट प्रोपल्शन लैबोरेटरी के निदेशक डॉ लॉरी लेशिन ने बताया कि निसार परियोजना अतीत में उड़ाई गई किसी भी चीज से बेहतर है. हालांकि पिछले मिशनों के डेटासेट हैं जो एक तरह की बेसलाइन बना सकते हैं, लेकिन निसार के साथ हम क्षमता के नए स्तर पर पहुंचेंगे. लेशिन ने कहा, “अगर यह बहुत अच्छी तरह से काम करता है, तो हम लगभग निश्चित रूप से लंबी आधार रेखा को प्राप्त करने के लिए उस मिशन का विस्तार करेंगे. उन्होंने बताया कि पृथ्वी को बहु-वर्षीय टाइमस्केल पर बदलते हुए देखना एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात है.”
नासा ने एक बयान में कहा कि इस परियोजना का उद्देश्य जंगली, कृषि, आर्द्रभूमि और पर्माफ्रॉस्ट पारिस्थितिक तंत्र में कार्बन भंडारण और उत्थान की गतिशीलता और जलवायु परिवर्तन के लिए बर्फ की चादरों की प्रतिक्रिया, समुद्री बर्फ और जलवायु के संबंध और दुनिया भर में समुद्र के स्तर में वृद्धि पर प्रभाव को समझना है. तो वहीं इसरो के अनुसार, निसार एक लो अर्थ ऑर्बिट (एलईओ) वेधशाला है जिसे उसके और नासा द्वारा संयुक्त रूप से विकसित किया जा रहा है. निसार 12 दिनों में पूरे विश्व का नक्शा तैयार करेगा और पृथ्वी के पारिस्थितिक तंत्र, बर्फ द्रव्यमान, वनस्पति बायोमास, समुद्र के स्तर में वृद्धि, भूजल और भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखी और भूस्खलन सहित प्राकृतिक खतरों में परिवर्तन को समझने के लिए स्थानिक और अस्थायी रूप से सुसंगत डेटा प्रदान करेगा.
नासा के अनुसार, निसार में जिस सिस्टम का इस्तेमाल किया गया है वो ऑनबोर्ड उपकरण अंतरिक्ष से एक सेंटीमीटर का मामूली बदलाव भी देख सकते हैं. एसयूवी आकार के उपग्रह का द्रव्यमान लगभग 2,800 किलोग्राम है, जो लगभग चार किलोवाट बिजली प्रदान करने वाले दो सौर प्रणालियों द्वारा संचालित होगा.