विधान परिषद में 11 सदस्यों की सीट खाली हो रही है, उसमें जदयू की तरफ से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, मंत्री संजय झा, खालीद अनवार और रामेश्वर महतो की सीट है. वहीं बीजेपी के तीन विधान पार्षद मंगल पांडे, संजय पासवान और सैयद शाहनवाज हुसैन का कार्यकाल भी समाप्त हो रहा है. जबकि राजद की दो सीट एक पूर्व सीएम राबड़ी देवी और दूसरा रामचंद्र पूर्वे का कार्यकाल समाप्त हो रहा है. कांग्रेस के एक प्रेमचंद्र मिश्रा और एक सीट जीतन राम मांझी के बेटे और हम के राष्ट्रीय अध्यक्ष संतोष सुमन की है, जिनका कार्यकाल 2024 मई में समाप्त हो रहा है, यानी कुल 11 सीट विधान परिषद की खाली हो जाएगी.
इन सब का चयन विधानसभा में विधायकों के चुनाव के माध्यम से होना है. 243 विधायकों में से अभी राजद के पास 79, बीजेपी के पास 78, जदयू के पास 45 कांग्रेस के पास 19, वामपंथी दलों के पास 16, हम के पास 4 और एआइएमआइएम के पास एक विधायक हैं. एक निर्दलीय विधायक भी हैं जो जदयू का समर्थन कर रहे हैं. विधायकों की संख्या और खाली सीट के हिसाब से देखें तो एक विधान परिषद सीट के लिए कम से कम 22-23 विधायक चाहिए और उसी हिसाब से जदयू के लिए दो सीट ही जितना संभव है. दो सीट का नुकसान नीतीश कुमार को होना तय है.
वहीं राजद की दो सीट का लाभ होगा और बीजेपी तीन सीट आसानी से जीत लेगी और जो विधायक बच जाएंगे उससे जीतन राम मांझी के बेटे को फिर से चुनने की कोशिश कर सकते हैं. राजनीतिक विशेषज्ञ अरुण पांडे का भी कहना है- ‘विधान परिषद के खाली हो रही 11 सीटों में से सबसे अधिक जदयू की चार सीटें हैं और इसलिए इस बार दो सीट का जदयू को नुकसान होगा, क्योंकि वो विधानसभा में तीसरे नंबर की पार्टी है तो वहीं राजद को इस बार सीटों का लाभ हो जाएगा’.
ऐसे तो सर्वसम्मति से फैसला करने की कोशिश होती रही है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तरफ से हमेशा यह कोशिश रही है कि दलों की विधायक बल के अनुसार ही उम्मीदवार उतारा जाए और अब तक इस पर अमल भी होता रहा है. इस बार देखना है कि चुनाव होने की स्थिति में क्या कुछ होता है, लेकिन संख्या बल को देखने से साफ है कि जदयू को इस बार दो सीटों का नुकसान होना तय है. खाली हो रहे हैं सीटों में खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं तो उनके अलावा मंत्री संजय झा भी हैं ऐसे में मुख्यमंत्री और मंत्री बनाए रखने के लिए दोनों का विधान परिषद में फिर से चुना जाना जरूरी है.