आरएसएस द्वारा नागपुर में आयोजित विजयादशमी उत्सव को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने संबोधित किया. इस दौरान उन्होंने भारत की एकता की परम्परा पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि भारत के बाहर के लोगों की बुद्धि चकित हो जाए, परंतु मन आकर्षित हो जाए, ऐसी एकता की परंपरा हमारी विरासत में हमको मिली है. उसका रहस्य क्या है? नि:संशय वह हमारी सर्व समावेशक संस्कृति है. उन्होंने ने कहा कि पूजा, परंपरा, भाषा, प्रान्त, जाति-पाति इत्यादि भेदों से ऊपर उठकर, अपने कुटुंब से संपूर्ण विश्वकुटुंब तक आत्मीयता को विस्तार देने वाली हमारी आचरण की व जीवन जीने की रीति है.
आरएसएस सरसंघचालक ने कहा कि हमारे पूर्वजों ने अस्तित्व की एकता के सत्य का साक्षात्कार किया, जिसके फलस्वरूप शरीर, मन, बुद्धि की एक साथ उन्नति करते हुए तीनों को सुख देने वाला, अर्थ, काम को साथ चलाकर मोक्ष की तरफ अग्रसर करने वाला धर्मतत्व उनको अवगत हुआ. उस प्रतीति के आधार पर उन्होंने धर्मतत्व के चार शाश्वत मूल्यों- सत्य, करुणा, शुचिता व तपस को आचरण में उतारने वाली संस्कृति का विकास किया. उन्होंने कहा कि चारों ओर से सुरक्षित तथा समृद्ध हमारी मातृभूमि के अन्न, जल, वायु के कारण ही यह संभव हुआ. इसलिए हमारी भारतभूमि को हमारे संस्कारों की अधिष्ठात्री माता मानकर उसकी हम भक्ति करते हैं.
सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि हाल ही में स्वतंत्रता संग्राम के महापुरुषों का स्मरण अपने स्वतंत्रता के 75वें वर्ष के निमित्त हमने किया. हमारे धर्म, संस्कृति, समाज व देश की रक्षा, समय-समय पर उनमें आवश्यक सुधार तथा उनके वैभव का संवर्धन जिन महापुरुषों के कारण हुआ, वे हमारे कर्तत्व सम्पन्न पूर्वज, हम सभी के गौरवनिधान हैं और अनुकरणीय हैं. आरएसएस सरसंघचालक ने कहा कि हमारे देश में विद्यमान सभी भाषा, प्रान्त, पंथ, संप्रदाय, जाति, उपजाति इत्यादि विविधताओं को एक सूत्र में बांधकर, एक राष्ट्र के रूप में खड़ा करने वाले यही तीन तत्व- मातृभूमि की भक्ति, पूर्वज गौरव और सबकी समान संस्कृति हमारी एकता का अक्षुण्ण सूत्र है.