राजस्थान विधानसभा चुनाव इस बार काफी खर्चीला होने वाला है. नई तकनीक और मतदाताओं को ज्यादा सुविधा मुहैया करवाने की तैयारी में इस बार चुनाव खर्च का बजट 300 करोड़ को पार करने वाला है. प्रदेश में 200 विधानसभा सीटों पर चुनाव आयोग 53 हजार से ज्यादा मतदान केंद्रों पर मतदान कराएगा. जानकारों को मुताबिक साल 2018 में चुनाव करवाने में 203 करोड़ रुपये का खर्च आया था. इस बार विधानसभा चुनाव में पिछले चुनाव के मुकाबले करीब 90 करोड़ रुपए ज्यादा खर्च होने वाला है. एक ओर लगातार बढ़ती महंगाई की वजह से खर्च बढ़ा है तो दूसरी ओर चुनाव को ज्यादा पारदर्शी और जनता के लिए आसान बनाने के लिए चुनाव करवाने वाले खर्च में भी इजाफा हुआ है.
साल 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में करीब 203 करोड़ रुपये खर्च हुए थे. इस बार ये खर्च 300 करोड़ को पार कर जाने का अनुमान है. चुनाव आयोग हर जिले में चुनाव करीब 1.5 करोड़ रुपये खर्च कर रहा है. चुनाव की तैयारी के लिए 1.5 करोड़ की राशि में से पहली किस्त के तौर पर हर जिला निर्वाचन अधिकारी को करीब 80 लाख रुपये ट्रांसफर भी कर दिए गए हैं. भले प्रदेश में नये जिलों की घोषणा हो गई हो, लेकिन चुनाव अभी प्रदेश जिलों के पैमाने को लेकर ही अपना काम कर रहा है. चुनाव में लगाये जाने वाले कर्मचारी, अधिकारी, उनकी ट्रेनिंग, एनफोर्समेंट एजेंसी, वाहन अधिग्रहण, मतदान की प्रक्रिया, मतदान केंद्र का संचालन, वेब कास्टिंग, सी विजिल जैसी एप्प के जरिए निगरानी, हो वोब्टिंग जैसी सुविधाएं और मतदान केंद्रों पर बेहतर सुविधाओं के निर्माण पर ये 300 करोड़ खर्च होने वाले हैं.
पोलिंग पार्टियों को टीए-डीए का खर्चा (वेतन और यात्रा भत्ता), पोलिंग पार्टियो को गाड़ी का किराया, सेक्टर मजिस्ट्रेट, एफएसटी (फ्लाइंग स्क्वॉड टीम), एसएसटी (स्टेटिक सर्विलांस टीम) और वीएसटी( वीडियो सर्विलांस टीम) के लिए अधिग्रहण की हुई गाड़ियों का किराया खर्चा, वेबकास्टिंग, टेंट लाइट, माइक व्यवस्था, अल्पाहार, भोजन व्यवस्था, सीसीटीवी कैमरे मय कलर टीवी, पेट्रोल-डीजल, स्टेशनरी, वीडियोग्राफी, ईवीएम एफएलसी, मतदान सामग्री, मेडिकल किट, ओवरटाइम-मानदेय, प्रचार-प्रसार सामग्री (फ्लैग्स, बैनर आदि), जीपीएस ट्रैकिंग, छाया-पानी, मुद्रण कार्य, अस्थाई दूरभाष व्यवस्था, अस्थाई निर्माण कार्य, मतदान केंद्रों पर व्यवस्था, ईवीएम ट्रांसपोर्टेशन, होमगार्ड पर भी खर्च होगा.
अब तक राजस्थान में 14 बार विधानसभा चुनाव हो चुके है और इस साल 15वीं बार विधानसभा के चुनाव होने जा रहे है. पहली बार जब विधानसभा चुनाव हुआ था तब प्रदेश में मतदाताओं की संख्या 48 लाख थी और प्रति व्यक्ति मतदान खर्च 46 पैसे आया था. इस बार मतदाताओं की संख्या 5.25 करोड़ को पार कर गई हैं और प्रति व्यक्ति मतदान खर्च 51 रुपये को पार करने वाला है. राजस्थान में 1962 में जब विधानसभा के चुनाव करवाए गए थे, तब राज्य में कुल 1 करोड़ 3 लाख से ज्यादा मतदाता थे. 176 विधानसभा सीटों के लिए हुए इन चुनाव में निर्वाचन आयोग को कुल 48 लाख रुपए खर्चा आया था. तब एक वोटर से वोट डलवाने का औसत खर्चा 50 पैसे से कम यानी 0.46 पैसे था, लेकिन 56 साल बाद यानी 2018 में जब विधानसभा चुनाव करवाए गए तो यही खर्चा 92 गुना बढ़कर 42.53 रुपए प्रति वोटर आया था.
राजस्थान के मुख्य चुनाव अधिकारी प्रवीण गुप्ता ने कहा कि इतने तामझाम करने का मकसद सिर्फ एक ही है कि प्रदेश हर मतदाता को अपने मतदाधिकार को उपयोग करने का मौका मिले और चुनाव पूरी निष्पक्षता और प्रलोभन या दबाव मुक्त हो. उम्मीद हैं मतदाता भी अपनी जिम्मेदारी समझें और प्रदेश के लिए एक बेहतर सरकार चुनने के लिए मतदान करेंगे. बता दें साल 2003 में विधानसभा चुनाव खर्च महज 24.90 करोड़ था, तो वहीं साल 2008 में विधानसभा चुनाव खर्च महज 55.66 करोड़ रहा था. वहीं साल 2013 में विधानसभा चुनाव खर्च 144 करोड़ तक पहुंच गया और साल 2018 में विधानसभा चुनाव खर्च 203 करोड़ तक पहुंच गया था. अब 2023 में विधानसभा चुनाव खर्च 300 करोड़ रुपये तक जाने का अनुमान है.