हमारे पास ओढ़ने के लिए बस अनंत आकाश बचा था और बिछाने के लिए केवल धरती. विधाता को पता नहीं क्या मंजूर था, चंद मिनटों में ही सब कुछ जमींदोज हो गया था. घर बर्तन, बिस्तर, कपड़े जो कुछ भी तिनका-तिनका कर हमने चालीस बरसों में संजोया था अब मलबे के ढेर में बदल चुका था.