वैश्विक स्तर पर आ रही विभिन्न आर्थिक समस्याओं के बीच, वित्तीय वर्ष 2023-24 की प्रथम तिमाही, अप्रेल-जून 2023, में सेवा क्षेत्र में हुए अतुलनीय सुधार के चलते भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 7.8 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। भारत की अर्थव्यवस्था में उक्त विकास दर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा हाल ही में कैलेंडर वर्ष 2022 में वैश्विक स्तर पर दर्ज की गई 3.5 प्रतिशत की विकास दर की तुलना में कैलेंडर वर्ष 2023 एवं 2024 में 3 प्रतिशत रहने के अनुमान से सर्वथा विपरीत है। वैश्विक स्तर पर विभिन देशों में मुद्रा स्फीति की समस्या को हल करने के उद्देश्य से लगातार की जा रही ब्याज दरों में वृद्धि के चलते अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा वैश्विक अर्थव्यवस्था की विकास दर के अनुमान को 3.5 प्रतिशत से घटाकर 3 प्रतिशत कर दिया गया था। भारत के संदर्भ में पूर्व में यह अनुमान लगाया गया था कि भारत के सकल घरेलू उत्पाद में कैलेंडर वर्ष 2023 के दौरान 5.9 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की जा सकेगी। परंतु, अप्रेल 2023 में इस अनुमान को बढ़ाकर 6.1 प्रतिशत कर दिया गया था।
भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा वित्तीय वर्ष 2023-24 के प्रथम तिमाही के दौरान भारत की आर्थिक विकास दर के 7.8 प्रतिशत रहने एवं वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान 6.5 प्रतिशत रहने की सम्भावना जताई गई थी। परंतु, भारतीय स्टेट बैंक द्वारा 43 प्रमुख आर्थिक सूचकांकों में वित्तीय वर्ष 2022-23 की चौथी तिमाही, जनवरी-मार्च 2023, की तुलना में वित्तीय 2023-24 की प्रथम तिमाही के दौरान लगातार हो रहे सकारात्मक परिवर्तनों के आधार पर यह अनुमान लगाया था कि भारत की विकास दर प्रथम तिमाही के दौरान 8.3 प्रतिशत रहेगी।
केंद्र सरकार के पूंजीगत व्यय में जबरदस्त उछाल दर्ज किया गया है। केंद्र सरकार के वित्तीय वर्ष 2023-24 के बजट में से प्रथम तिमाही के दौरान 27.8 प्रतिशत का पूंजीगत व्यय सम्पन्न किया जा चुका है। पूंजीगत व्यय में इसी प्रकार की वृद्धि कई राज्य सरकारों के बजट खर्चों में भी दिखाई दे रही है। जैसे, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, मध्यप्रदेश के पूंजीगत खर्चों में 41 प्रतिशत की वृद्धि दर दृष्टिगोचर हुई है। इसी प्रकार की वृद्धि कम्पनियों की लाभप्रदता में भी दिखाई दे रही है। कम्पनियों के टैक्स अदा करने के उपरांत लाभ की राशि में वित्तीय वर्ष 2023-24 की प्रथम तिमाही के दौरान 30 प्रतिशत की वृद्धि (पिछले तिमाही की तुलना में) दर्ज की गई है। विशेष रूप से बैंक, ऑटो, सूचना प्रौद्योगिकी, फार्मा एवं रिफाईनरी क्षेत्र की कम्पनियों में भारी वृद्धि दर अर्जित की गई है। यहां यह ध्यान देने की बात है कि जनवरी-मार्च 2023 तिमाही के पूर्व तक कुछ क्षेत्रों की कम्पनियों की लाभप्रदता में कुछ दबाव दिखाई दे रहा था परंतु इसके बाद से स्थिति में तेजी से सुधार दिखाई दे रहा है।
भारत के विनिर्माण क्षेत्र की कम्पनियों की उत्पादन क्षमता के दोहन में भी सुधार दिखाई दे रहा है, जो अब 75 प्रतिशत से ऊपर पहुंच गया है। सामान्यतः उत्पादन क्षमता का दोहन 75 प्रतिशत से अधिक होने की स्थिति में औद्योगिक इकाईयां अपनी उत्पादन क्षमता में वृद्धि करने के बारे में विचार करने लगती हैं। भारत की औद्योगिक इकाईयां अब इस स्थिति में पहुंच गई दिखाई दे रही हैं क्योंकि बैंकों द्वारा प्रदान की जा रही ऋण की राशि में पिछले कुछ समय से लगातार तेजी दिखाई दे रही है। समस्त अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के ऋणों में अप्रेल- 28जुलाई 2023 की अवधि के दौरान 19.7 प्रतिशत की वृद्धि अर्जित हुई है जो पिछले वर्ष इसी अवधि के दौरान 14.5 प्रतिशत थी। ऋण राशि में वृद्धि दर लगातार पिछले कई तिमाहियों से दहाई के आंकड़े पर बनी हुई है। जबकि इन्हीं बैकों की जमाराशि में वृद्धि दर 12.9 प्रतिशत की रही है जो पिछले वर्ष इसी अवधि में मात्र 9.2 प्रतिशत रही थी। ऋण की राशि में यह वृद्धि दर ब्याज दरों में लगातार की जा रही वृद्धि दर के चलते भी सम्भव हो सकी है। विशेष रूप से सरकारी क्षेत्र के बैंकों की वित्तीय स्थिति (ऋण राशि में वृद्धि, लाभप्रदता में वृद्धि, पूंजी पर्याप्तता अनुपात में वृद्धि, गैर-निष्पादनकारी आस्तियों में कमी, आदि) में लगातार सुधार दर्ज करते हुए अब यह बैंक मजबूत स्थिति में पहुंच गए हैं। सरकारी क्षेत्र के बैंकों ने वित्तीय वर्ष 2023-24 की प्रथम तिमाही में 34,418 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ अर्जित किया है, जबकि पूरे वित्तीय वर्ष 2022-23 में यह एक लाख करोड़ रुपए के आसपास रहा था। पूंजी बाजार में इन बैंकों के शेयरों की कीमत में भी हाल ही के समय में अतुलनीय वृद्धि दर्ज हुई है। किसी भी देश के बैंक यदि मजबूत स्थिति में पहुंच जाते हैं तो उस देश के अन्य क्षेत्र के उद्योगों को ऋण की उपलब्धता में आसानी होती है और इसके चलते विभिन उद्योगों के उत्पादन में वृद्धि दर्ज होने लगती है। औद्योगिक क्षेत्र में बैकों को इसीलिए केंद्रीय भूमिका में रखा जाता है।
भारत की आंतरिक अर्थव्यवस्था में, विभिन्न आर्थिक मानकों पर, लगातार सुधार हो रहा है जिसके चलते भारत की विकास दर वित्तीय वर्ष 2023-24 के प्रथम तिमाही में 7.8 प्रतिशत रही है। परंतु, साथ ही, अब वैश्विक स्तर पर कुछ इस प्रकार की घटनाएं घट रही हैं जिनका असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक रूप से पढ़ता दिखाई दे रहा है। विशेष रूप से चीन की अर्थव्यवस्था, जो विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, हालही के समय में बहुत गम्भीर स्थिति का सामना कर रही है। चीनी सरकार द्वारा देश की आर्थिक स्थिति को सुधारने हेतु किये जा रहे विभिन्न उपायों का कोई भी सकारात्मक असर होता दिखाई नहीं दे रहा है। प्रतिकूल जनसांख्यिकी, अमेरिका तथा यूरोपीयन देशों के साथ चीन की बढ़ती दूरियां तथा चीन के अपने पड़ौसी देशों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंधो के नहीं होने से चीन की आर्थिक स्थिति और अधिक खराब होने की सम्भावना बताई जा रही है। चीन में पिछले 40 वर्षों के दौरान लगातार सफलता पूर्वक चल रहे आर्थिक मॉडल पर अब संकट के बादल मंडराने लगे हैं। वैश्विक स्तर पर कई अर्थशास्त्रियों का अब यह मानना है कि चीन की अर्थव्यवस्था बहुत धीमी वृद्धि दर के युग में प्रवेश करती दिखाई दे रही है।
चीन की अर्थव्यवस्था में यदि आर्थिक संकट जारी रहता है तो इसका सीधा सीधा फायदा भारतीय अर्थव्यवस्था को मिलता हुआ दिखाई दे रहा है क्योंकि वैसे भी कोरोना महामारी के बाद से उद्योग जगत में वैश्विक स्तर पर यह सोच विकसित हो चुका है कि चीन के साथ ही अन्य किसी देश में भी उत्पादन इकाई का होना बहुत जरूरी है। इस विचार को ‘चीन+1’ का नाम दिया गया है। परंतु, अब तो चीन में लगातार गहराते आर्थिक संकट के बीच कई बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा अपनी औद्योगिक इकाईयों को चीन से अन्य देशों में स्थानांतरित करने के बारे में गम्भीरता से विचार किया जा रहा है और कुछ कम्पनियों द्वारा तो अपनी विनिर्माण इकाईयां अन्य देशों में स्थानांतरित भी की जा चुकी हैं। बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की इस नीति का सबसे अधिक लाभ भारत को मिलने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है।
बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट्स द्वारा जारी की गई एक जानकारी के अनुसार चीनी सरकार व सरकार के स्वामित्व वाली कंपनियों के विभिन्न स्तरों पर लिए गए कुल ऋण वर्ष 2022 तक चीन के सकल घरेलू उत्पाद का करीब 300 प्रतिशत तक पहुंच गए थे जो वर्ष 2012 में 200 प्रतिशत से भी कम थे। अब चीन में कई सरकारी कम्पनियां ऋण के इस बोझ को कम करने के लिए जूझ रही हैं और उन्हें ऋण पर ब्याज अदा करने के लिए भी ऋण लेना पड़ रहा है। चीन में युवाओं के बीच बेरोजगारी की दर 21 प्रतिशत से भी अधिक हो गई है। चीन की कुल जनसंख्या में बुजुर्गों की संख्या तेजी से बढ़ रही है क्योंकि वहां युवा नागरिक बच्चे पैदा करने से बच रहे हैं। चीन इस समय अपस्फीति (डीफलेशन) की स्थिति से गुजर रहा है। चीन के नागरिकों के हाथ में पैसा होने के बावजूद वे उत्पादों की खरीद नहीं कर रहे हैं, इससे विभिन्न उत्पादों की कीमतें कम हो रही हैं, कम्पनियों की लाभप्रदता पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है, कम्पनियां अपना उत्पादन घटा रही है जिससे अंततः बेरोजगारी की दर बढ़ रही है। चीन की अर्थव्यवस्था यदि लम्बे समय तक ढलान पर बनी रहती है तो इन परिस्थितियों के बीच भारत के उद्योग जगत को लाभ उठाना चाहिए। जिन जिन देशों में चीनी उत्पादों का निर्यात कम हो रहा है ऐसे क्षेत्रों में भारत की कम्पनियों को अपनी पैठ बना लेने का यह सही समय है। चीन के सम्बंध कई पश्चिमी एवं पड़ौसी देशों से अच्छे नहीं हैं, यह समस्त देश भारत के मित्र देश हैं। इन परिस्थितियों के बीच भारत के उद्योग जगत को आगे आकर अपने उत्पादों को इन बाजारों में प्रोत्साहित करना चाहिए। चीन से विस्थापित होने वाली बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को भारत में आकर्षित करना चाहिए ताकि वे अपनी औद्योगिक इकाईयों को भारत में हस्तांतरित करें। इससे भारत में आर्थिक गतिविधियों को और अधिक बल मिलेगा। हालांकि भारत की अर्थव्यवस्था पहिले से ही बहुत मजबूत अवस्था में पहुंच चुकी है, इसे और अधिक बल प्रदान किया जा सकता है ताकि भारत की विकास दर 10 प्रतिशत के आसपास पहुंच सके।
भारत के प्रति पश्चिमी देशों को बदलना होगा अपना नजरिया
अंततः भारत चल पड़ा है विश्व गुरु बनने की राह पर। परंतु, पश्चिमी देशों में कुछ विघनसंतोषी जीवों को शायद यह रास नहीं आ रहा है क्योंकि भारत, ब्रिटेन का कभी औपनिवेशिक देश रहा है और इन देशों की नजर में यह कैसे हो सकता है कि ब्रिटेन के चन्द्रमा पर पहुंचने के पूर्व ही उनका एक पूर्व औपनिवेशक देश अपना चन्द्रयान-3 सफलता पूर्वक चन्द्रमा पर उतार ले। भारत, पूरे विश्व में, पहिला देश है जिसने चन्द्रयान-3 को चन्द्रमा के दक्षिणी पोल पर सलतापूर्वक उतार लिया है। अन्यथा, विश्व का कोई भी देश, अमेरिका, रूस एवं चीन सहित, अभी तक चन्द्रमा के दक्षिणी पोल पर अपना यान उतारने में सफल नहीं हो सका हैं। निश्चित ही भारत की यह सफलता न केवल भारत के लिए बल्कि विश्व के समस्त देशों के लिए गर्व का विश्व होना चाहिए। यदि चन्द्रयान-3 अपने उद्देश्यों में सफल हो जाता है जैसे चन्द्रमा पर पानी उपलब्ध है अथवा नहीं, चन्द्रमा पर किस प्रकार के खनिज पदार्थ (सोना, प्लेटिनम, टाइटेनियम, यूरेनियम, आदि), रासायनिक पदार्थ, प्राकृतिक तत्व, मिट्टी एवं अन्य तत्व पाए जाते हैं, आदि का पता लगने पर क्या इस जानकारी का लाभ केवल भारत को ही होने जा रहा है अथवा क्या विश्व के अन्य देश भी इस जानकारी का लाभ उठा सकने की स्थिति में नहीं होंगे। परंतु, पश्चिमी देशों में कुछ तत्व भारत की इस महान उपलब्धि को सकारात्मक दृष्टि से न देखते हुए इस संदर्भ में अपनी नकारात्मक सोच को आगे बढ़ाते हुए दिखाई दे रहे है, और सम्भव है कि भारत के प्रति उनकी यह नकारात्मक सोच इन देशों के लिए भविष्य में हानिकारक सिद्ध हो।
न्यूयॉर्क टाइम्स ने एक कार्टून छापा है जिसमें बताया गया है कि विशिष्ट वर्ग के दो नागरिक एक कक्ष (कैबिन) में बैठे हैं एवं इनमें से एक संभ्रात व्यक्ति एक अखबार में भारत के मंगल मिशन के सम्बंध में जानकारी पढ़ रहा है। इस कक्ष के बाहर भारतीय गरीब किसान के रूप में एक गाय को लेकर एक व्यक्ति दरवाजे के बाहर खड़ा है, जो दरवाजे पर दस्तक देता हुआ दिखाई दे रहा है। इस कार्टून से ऐसा महसूस कराए जाने का प्रयास किया जाना प्रतीत हो रहा है कि जैसे एक गरीब भारत देश, पश्चिमी देशों से अपने मंगल मिशन के लिए सहायता मांग रहा हो। संभवत: भारत के चन्द्रयान-3 की सफलता को पश्चिमी देशों में कुछ तत्व पचा नहीं पा रहे हैं।
एक ब्रिटिश पत्रकार पेट्रिक क्रिस्टी ने भारत को चन्द्रयान-3 को चन्द्रमा के दक्षिणी पोल पर सफलता पूर्वक उतारे जाने की बधाई देते हुए यह मांग की है कि ब्रिटेन द्वारा भारत को उपलब्ध कराई जा रही आर्थिक सहायता राशि को वापिस लिया जाना चाहिए क्योंकि उसके अनुसार चूंकि भारत की आधी आबादी गरीबी का जीवन जी रही है अतः ब्रिटेन द्वारा भारत को दी जा रही आर्थिक सहायता राशि का उपयोग भारत में गरीबी मिटाने के उद्देश्य से न किया जाकर अंतरिक्ष में अपने चन्द्रयान भेजने के लिए किया जा रहा है। इस ब्रिटिश पत्रकार का दावा है कि ब्रिटेन द्वारा भारत को वर्ष 2016 से वर्ष 2021 के बीच 230 करोड़ ब्रिटिश पाउंड की राशि आर्थिक सहायता के रूप में उपलब्ध कराई गई है। उक्त पत्रकार का यह भी कहना है कि यदि भारत अपने राकेट को अंतरिक्ष में भेज रहा है तो भारत को ब्रिटेन के पास कटोरा लेकर मदद के लिए नहीं आना चाहिए। जबकि इस संदर्भ में वास्तविकता यह है कि भारत कभी भी ब्रिटेन के पास आर्थिक सहायता मांगने के लिए गया ही नहीं है। इस संदर्भ में ब्रिटेन द्वारा सरकारी तौर पर उपलब्ध कराई गई जानकारी के अनुसार ब्रिटेन ने भारत को किसी भी प्रकार की वित्तीय सहायता उपलब्ध नहीं कराई हैं परंतु ब्रिटेन ने वर्ष 2015 के बाद से भारत में व्यवसाय को बढ़ावा देने के उद्देश्य से निवेश जरूर किया है ताकि भारत के बाजार में ब्रिटेन का योगदान बढ़ सके एवं ब्रिटेन के नागरिकों के लिए रोजगार के अवसर निर्मित हो सकें।
यह भी एक वास्तविकता है कि भारत आज विश्व की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है और इस संदर्भ में हाल ही में भारत ने ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था को पीछे छोड़ते हुए अपनी अर्थव्यवस्था को आकार में ब्रिटेन से भी बड़ी अर्थव्यवस्था बना लिया है। परंतु, कुछ ब्रिटिश राजनीतिज्ञ एवं पत्रकार इस तथ्य को स्वीकार ही नहीं कर पा रहे हैं और वे अपनी साम्राज्यवादी सोच से भी बाहर नहीं आ पा रहे हैं। ऐसे तत्व आज भी भारत को अपनी एक कालोनी (उपनिवेश) के रूप में ही देख रहे हैं और सोच रहे हैं कि भारत कैसे ब्रिटेन से पहिले चन्द्रमा पर पहुंच सकता है। जबकि आज वस्तुस्थिति यह है कि ब्रिटेन की आर्थिक हालत इतनी अधिक खराब हो गई है कि ब्रिटेन के नागरिकों को अपने बिजली के बिल का भुगतान करने के लिए भी ऋण लेना पड़ रहा है।
पश्चिमी देशों को अब यह समझना होगा कि यह 21वीं सदी है एवं वैश्विक पटल पर भारत अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए आगे बढ़ चुका है। यह पश्चिमी देशों के हित में ही होगा कि वे भारत की विकास यात्रा में भागीदार बनें एवं अपने आर्थिक हितों को भी बल प्रदान करें, इस बात को जितनी जल्दी समझें उनके लिए उतना ही अच्छा है क्योंकि अन्यथा वे स्वयं के आर्थिक हितों को नुक्सान ही पहुंचा रहे होंगे। क्या ब्रिटेन इस बात को भूल गया है कि औपनिवेशक खंडकाल में उसने भारत पर शासन के दौरान वर्ष 1765 से लेकर वर्ष 1938 तक भारत से 45 लाख करोड़ पाउंड की लूट की है (यह तथ्य एक अधय्यन प्रतिवेदन में सामने आया है), हो सकता है यह राशि और भी अधिक रही हो। परंतु, उक्त राशि भी ब्रिटेन के सकल घरेलू उत्पाद का 15 गुणा है। उक्त राशि को ब्रिटेन द्वारा भारत को लौटाए जाने पर भी विचार किया जाना चाहिए। ब्रिटेन द्वारा भारत में की गई भारी लूट के बावजूद भारत एक बार पुनः अब अपने पैरों पर खड़ा हो चुका है एवं भारत को अपने मिशन चन्द्रमा ग्रह, मिशन मंगल ग्रह एवं मिशन सूर्य ग्रह पर पश्चिमी देशों के दर्शन की आवश्यकता नहीं है। भारत को वैसे भी अब अंतरिक्ष के क्षेत्र में नित नयी सफलता की कहानियां गढ़ने की आदत पड़ चुकी है, और फिर चन्द्रमा के दक्षिणी पोल पर चन्द्रयान-3 को सफलता पूर्वक उतारना तो एक शुरुआत भर है।
भारत का मिशन चन्द्रयान-3 तुलनात्मक रूप से बहुत किफायती रहा है। इस पूरे मिशन पर केवल लगभग 615 करोड़ रुपए की लागत आई है, जबकि अन्य देशों यथा अमेरिका, रूस एवं चीन की इस तरह के मिशनों पर हजारों करोड़ रुपए की लागत आती रही है। साथ ही, चन्द्रयान-3 ने 14 जुलाई 2023 को आन्ध्रप्रदेश के श्रीहरीकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से अपनी यात्रा प्रारम्भ की थी और केवल 41 दिनों के बाद, 23 अगस्त 2023 को चन्द्रयान-3 ने चन्द्रमा के दक्षिणी पोल पर सफलता पूर्वक अपनी लैंडिंग सम्पन्न कर एक नया विश्व कीर्तिमान स्थापित किया है। इसरो ने चंद्रयान-3 की लैंडिंग के लिए चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव को इसलिए चुना क्योंकि सूर्य द्वारा कम प्रकाशित होने के संबंध में दक्षिणी ध्रुव को एक विशिष्ट लाभ प्राप्त है। इसरो के अध्यक्ष इस सम्बंध में कहते हैं कि चंद्रमा मिशन पर कार्य कर रहे वैज्ञानिकों ने दक्षिणी ध्रुव में बहुत रुचि दिखाई क्योंकि अंततः मनुष्य वहां जाकर उपनिवेश बनाना चाहते हैं और फिर उससे आगे की यात्रा करना चाहते हैं। इसलिए इसरो चन्द्रमा पर सबसे अच्छी जगह की तलाश कर रहा हैं और चन्द्रमा के दक्षिणी ध्रुव में वह क्षमता है। चन्द्रयान-3 के प्रज्ञान रोवर के पास दो उपकरण हैं, दोनों चंद्रमा पर मौलिक संरचना के निष्कर्षों के साथ-साथ रासायनिक संरचनाओं से संबंधित हैं। अतः यह चन्द्रमा की सतह पर चक्कर लगाकर उक्त विषयों पर जानकारी भारत को उपलब्ध कराएगा।
वैसे भी देखा जाय तो अमेरिका के अंतरिक्ष केंद्र नासा में बड़ी संख्या में भारतीय मूल के इंजीनियर्स कार्यरत हैं जबकि भारत के अंतरिक्ष केंद्र इसरो में सम्भवत: एक भी अमेरिकी इंजीनियर कार्यरत नहीं है। अर्थात, पश्चिमी देशों के अंतरिक्ष से जुड़े विभिन्न मिशनों में भारतीयों का सीधा सीधा योगदान रहता आया है। भारत के इसरो प्रमुख का तो यहां तक कहना है कि आधुनिक विज्ञान की उत्पत्ति वेदों से हुई है, परंतु पश्चिमी देशों ने इसे अपनी खोज की तरह प्रस्तुत किया है। अतः इस संदर्भ में कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि अंतरिक्ष से जुड़े पश्चिमी देशों के विभिन्न मिशन अपरोक्ष रूप से भारत के सहयोग से ही चल रहे हैं जबकि इस क्षेत्र में भारत के विभिन्न मिशन अपने बलबूते पर चल रहे हैं। अब पश्चिमी देशों को इस वस्तुस्थिति से अवगत होना बहुत जरूरी है।
वैसे भी अंतरिक्ष के क्षेत्र में हाल ही के समय में भारत का एक तरह से वर्चस्व स्थापित होता दिखाई दे रहा है। आज पूरी दुनिया ही अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत का लोहा मानने लगी है। भारत ने इस क्षेत्र में अमेरिका, रूस एवं चीन जैसे देशों के एकाधिकार को तोड़ा है। भारत आज समूचे विश्व में सैटेलाइट के माध्यम से टेलीविजन प्रसारण, मौसम के सम्बंध में भविष्यवाणी और दूरसंचार जैसे क्षेत्रों में बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है और चूंकि ये सभी सुविधाएं उपग्रहों के माध्यम से ही संचालित होती हैं, अतः संचार उपग्रहों को अंतरिक्ष में स्थापित करने की मांग आज समस्त देशों के बीच बढ़ रही है। चूंकि भारतीय तकनीक तुलनात्मक रूप से बहुत सस्ती है अतः कई देश अब इस सम्बंध में भारत की ओर आकर्षित हो रहे हैं। इन परिस्थितियों के बीच चंद्रयान-3 की कम लागत में सफल लैंडिंग के बाद व्यवसायिक तौर पर भारत के लिए संभावनाएं पहले से अधिक बढ़ गयी है। आज भारतीय इसरो की, कम लागत और सफलता की गारंटी, सबसे बड़ी ताकत बन गयी है। अंतरिक्ष बाजार में भारत की धमक का यह स्पष्ट संकेत दिखाई दे रहा है और इस क्षेत्र में भारत एक धूमकेतु की तरह बनकर उभरा है। भारतीय इसरो अपने 100 से ज्यादा अंतरिक्ष अभियान, चन्द्रमा मिशन, मंगल मिशन, स्वदेशी अंतरिक्ष शटल, एवं चन्द्रयान-3 सहित, सफलतापूर्वक सम्पन्न कर चुका है।