बलात्कार की परिभाषा को भारतीय दण्ड संहिता (IPC) की धारा 375 में परिभाषित किया गया है. बलात्कार की परिभाषा को दण्ड विधि (संशोधन) अधिनियम, 2013 (2013 का 13) की धारा 9 द्वारा धारा 375 के स्थान पर प्रतिस्थापित किया गया जो 3 फरवरी, 2013 से लागू है.
इस संशोधन के द्वारा धारों 375 में दी गई पूर्व बलात्कार की परिभाषा को हटा दिया गया. अतः दण्ड विधि (संशोधन) अधिनियम, 2013 के द्वारा भारतीय दण्ड संहिता की धारा 375 में बलात्कार को इस प्रकार परिभाषित किया गया है-
धारा 375 आईपीसी क्या है? कोई पुरुष बलात्कार किया है यह तब कहा जाता है, यदि वह-
A. अपना लिंग किसी भी सीमा तक स्त्री की योनि, उसके मुंह, मूत्रमार्ग या गुदा में प्रवेश करता है या किसी अन्य व्यक्ति के साथ करवाता है. उसका लिंग योनि में कितना गया यह महत्त्वहीन है, या
B. मनुष्य के द्वारा लिंग के अतिरिक्त भी किसी वस्तु या शरीर का कोई अंग किसी भी सीमा तक स्त्री की योनि, मूत्रमार्ग, गुदा में प्रवेश (घुसाना या डालना) या किसी अन्य व्यक्ति से करवाता है, या
C. यदि कोई मनुष्य महिला के शरीर के किसी भाग को इस प्रकार मोड़ता है जिससे कि उसका लिंग स्त्री की योनि, मूत्रमार्ग या गुदा या शरीर के किसी भाग में घुसता है या उसने किसी अन्य साथी के साथ करवाया है, या
D. यदि कोई पुरुष स्त्री की योनि, मूत्रमार्ग या गुदा में अपना मुँह लगाता है या किसी अन्य व्यक्ति के साथ करवाता है, तो इसे बलात्कार कहा जाता है.
ऐसा कोई भी काम जो धारा 375 के खण्ड (A) से खण्ड (D) के उपबन्ध के अन्दर आता है. उसे धारा में वर्णित निम्नलिखित 7 प्रकार की परिस्थितियों में से किसी के अधीन होना चाहिए-
1. धारा 375 का प्रथमखण्ड उन मामलों में लागू होता है जहाँ कि स्त्री की इच्छा के विरुद्ध कोई पुरुष मैथुन करता है. यह खण्ड पूर्णतया चेतन स्त्री की परिकल्पना करता है जो सम्मति देने की स्थिति में होती है इच्छा के विरुद्ध शब्दावली से तात्पर्य उस इच्छा से है जिसके द्वारा स्त्री कुछ करने या करने का निर्णय नहीं कर पाती. इच्छा से तात्पर्य संभोग से पहले की इच्छा से है न कि संभोग के बाद की.
2. धारा 375 का दूसरा खण्ड उन मामलों में लागू होता है जहाँ कि शराब या दवा के प्रभाव या किसी अन्य कारण से स्त्री संज्ञाहीन है या इतनी अल्पमति है कि वह कोई उचित सम्मति देने में असमर्थ है. बचाव के लिए संभोग से पूर्व स्त्री की सम्मति प्राप्त करना आवश्यक है न कि संभोग के बाद यह कोई युक्तियुक्त बचाव नहीं माना जायेगा कि स्त्री ने कृत्य (संभोग) के बाद अपनी सम्मति दे दिया था.
प्रताप मिश्रा बनाम उड़ीसा राज्य, (AIR 1977 SC 1307) के मामले में अभियुक्त तथा स्त्री के शरीर पर कोई निशान नहीं पाये गये जिससे न्यायालय ने यह निष्कर्ष निकाला कि स्त्री द्वारा संभोग का प्रतिरोध नहीं किया गया. अतः निश्चित रूप से संभोग स्त्री की सहमति से किया गया था.
3. धारा 375 के तृतीय खण्ड के अन्तर्गत यह उपबन्ध किया गया है कि यदि किसी स्त्री को मृत्यु या उपहति में डालकर उसकी सम्मति संभोग के लिए प्राप्त की जाती है तो ऐसी सम्मति वैध सम्मति नहीं होगी और संभोग करने वाला व्यक्ति बलात्कार का दोषी होगा.
4. धारा 375 के चतुर्थ खण्ड में यह उपबन्ध किया गया है यदि कोई स्त्री किसी पुरुष द्वारा यह विश्वास दिलाये जाने पर कि वह उसका पति है, सद्भावपूर्वक उसे अपना पति समझकर सम्भोग की सहमति देती है इस प्रकार की सहमति भी वैध सहमति नहीं मानी जायेगी तथा अभियुक्त बलात्कार के अपराध का दोषी माना जायेगा.
5. धारा 375 के पंचम खण्ड के अन्तर्गत उन परिस्थितियों का वर्णन किया गया है जिन परिस्थितियों में महिला की सम्मति से किया गया संभोग बलात्कार माना जाता है-
विकृतचित्त है,
मदोन्मत है या
ऐसी स्त्री जिसको किसी पुरुष ने कोई ऐसी वस्तु पिला दी है जिससे वह कार्य की प्रकृति और परिणाम को समझने में असमर्थ हो गई हो.
6. धारा 375 का खण्ड (6) के अन्तर्गत उपबन्ध है कि 18 वर्ष से कम आयु की स्त्री की सम्मति विसंगत होती है इसलिए किसी ऐसी स्त्री की सम्मति से संभोग किया जाता है जिसकी उम्र 18 वर्ष से कम है तो वह बलात्कार होगा. धारा 375 के द्वितीय अपवाद के अन्तर्गत यह उपबन्ध किया गया है कि पुरुष द्वारा अपनी स्त्री के साथ लैंगिक समागम से बलात्कार गठित नहीं होगा बशर्ते पत्नी की उम्र 15 वर्ष से कम न हो. यदि पत्नी की उम्र 15 वर्ष से कम है तो लैंगिक समागम बलात्कार होगा.
धारा 375 के खण्ड सात के अन्तर्गत यह उपबन्ध किया गया है कि लिंग सम्बन्ध बलात्कार होगा जबकि महिला अपनी सहमति व्यक्त करने में असमर्थ है और यह असमर्थता किसी भी कारण से हो सकती है
7. धारा 375 के दो अपवाद भी हैं. पहला अपवाद यह कहता है कि किसी चिकित्सीय प्रक्रिया या अंतःप्रवेशन से बलात्कार गठित नहीं होगा, द्वितीय अपवाद यह कहता है कि किसी पुरुष का अपनी पत्नी के साथ सहवास बलात्कार नहीं माना जायेगा यदि पत्नी को उम्र पन्द्रह वर्ष से अधिक है
धारा 375 में दण्ड
जो कोई बलात्संग करेगा वह दोनों में से किसी भांति के कठोर कारावास से, जिसकी अवधि 10 वर्ष से कम की नहीं होगी किन्तु जो आजीवन कारावास तक की हो सकेगी दण्डित किया जायेगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा. जो कोई 16 वर्ष से कम आयु को किसी स्त्री से बलात्संग करेगा, वह कठिन कारावास से, जिसकी अवधि 20 वर्ष से कम की नहीं होगी किन्तु जो आजीवन कारावास, जिसका अभिप्राय उस व्यक्ति के शेष प्राकृत जीवनकाल के लिए कारावास होगा, तक की हो सकेगी, दंडित किया जायेगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा [दण्ड विधि (संशोधन) अधिनियम, 2018 द्वारा अन्तःस्थापित ]