केंद्र सरकार ने कल सोमवार को बिहार में जातीय जनगणना के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जारी किए गए अपने हल्फनामे से एक पैरा हटा लिया है. इसके बाद केंद्र ने अदालत में एक नया हल्फनामा दायर किया है. केंद्र सरकार ने अपने नए हलफनामे में कहा है कि पैरा-5 गलती से शामिल हो गया था. इस नए हलफनामे में ‘जनगणना जैसी कोई अन्य प्रक्रियाएं’ शब्द को हटा लिया गया है. हांलाकि केंद्र सरकार के दायर पहले हल्फनामें के बाद से ही बिहार में सियासत गरमाई हुई है.
केन्द्र के हलफनामे पर आरजेडी सुप्रीमों लालू यादव ने बीजेपी और केन्द्र सरकार पर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि, ‘बीजेपी का जन्म ही पिछड़ा विरोध में हुआ है. बीजेपी कभी भी नहीं चाहती कि वंचित वर्गों का सामाजिक और आर्थिक उत्थान हो. किसी भी वर्ग के गरीबों के कल्याणार्थ हेतु बिहार सरकार द्वारा कोई सामाजिक सर्वे कराना गरीब विरोधी BJP को अनुचित कैसे लगता है?’
वहीं बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने बीजेपी और केन्द्र को अज्ञानी बताया. तेजस्वी ने कहा कि, ‘गरीब और पिछड़ा विरोधी BJP सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में शपथ पत्र देकर बिहार सरकार द्वारा गरीबों और वंचितों के उत्थान एवं जनकल्याणकारी योजनाएं बनाने के लिए जुटाए जा रहे सटीक, वैज्ञानिक और विश्वसनीय आंकड़ों के जातीय सर्वे का विरोध किया है. इन लोगों को कोई ज्ञान नहीं है. सच्ची बातों को ये लोग दबाना चाहते है.
दरअसल केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक के बाद एक दो हलफनामा डाला है. पहले हलफनामा के पांचवें पैराग्राफ में कहा गया था कि संविधान के मुताबिक जनगणना केंद्र का क्षेत्राधिकार है, दूसरी संस्था जनगणना या जनगणना जैसी कोई अन्य प्रक्रियाएं नहीं कर सकती है. इसके कुछ ही घंटे में केंद्र सरकार ने हलफनामे को बदल दिया और केंद्र की ओर से जो दूसरा हलफनामा दिया गया उसमें पैराग्राफ 5 को हटा दिया गया. जिसमें ‘जनगणना जैसी कोई अन्य प्रक्रियाएं’ शब्द का जिक्र था. हालांकि केंद्र सरकार इस बात पर कायम है कि सेंसेक्स एक्ट 1948 के तहत सिर्फ केंद्र को ही समग्र जनगणना करने का अधिकार है.
कानून के जानकारों के मुताबिक भी राज्य सरकार अपने यहां किसी भी तरह का सर्वेक्षण करा सकती है या किसी सर्वेक्षण या आंकड़े जुटाना के लिए कोई कमेटी या आयोग बना सकती है. इसी अधिकार के तहत बिहार सरकार ने ये सर्वे काराया है, जो जनगणना नहीं है बल्कि वो सिर्फ जातिगत सर्वे कर रही है. केंद्र सरकार ने भी अपने हल्फनामें से “जनगणना जैसी कोई अन्य प्रक्रियाएं’ शब्द को हटा लिया है, यानी की राज्य सरकार जनगणना जैसी कोई अन्य प्रक्रियाएं कराने के लिए स्वतंत्र है, लेकिन वो जनगणना नहीं करा सकती.
आपको बता दें कि बिहार सरकार ने अपने हलफनामे में पहले ही कहा है कि वो जनगणना नहीं करा रही है, बल्कि सिर्फ जातिगत सर्वे कर रही है. जो किसी भी राज्य में तमाम जाति और गरीबों को समान्य रूप से योजनाओं का लाभ पहुंचाने के लिए जरूरी है. इससे पिछड़े, अति पिछड़ा और गरीब वर्ग को लोगों को उनकी जाति के हिसाब से योजनाओं में हिस्सेदारी मिलेगी. बिहार सरकार राज्य के अंदर जातिगत जनगणना के काम को तेजी से आगे बढ़ा रही है. 80% काम पूरा भी हो चुका है. पटना उच्च न्यायालय के फैसले के बाद राज्य सरकार ने जातिगत जनगणना के प्रारूप को अंतिम रूप देना शुरू कर दिया है, इन सब के बीच मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है.