5 वर्ष बाद एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी साउथ अफ्रीका के दौरे पर पहुंचे हैं। पीएम मोदी 22 से 24 अगस्त तक 15वें ब्रिक्स सम्मेलन में हिस्सा लेंगे, जिसका आयोजन साउथ अफ्रीका की राजधानी जोहांसबर्ग में हो रहा है. इस रिपोर्ट में हंम जानेंगे कि ब्रिक्स क्या है? ये कैसे बना? इसका उद्देश्य क्या है और क्यों विश्व के कई देश इसका हिस्सा बनना चाहते हैं?
ब्रिक्स क्या है?
दुनिया की पांच सबसे तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के एक समूह को ब्रिक्स कहा जाता है. BRICS शब्द का हर अक्षर एक देश का प्रतिनिधित्व करता है। B से ब्राजील, R से रूस, I से भारत, C से चीन और S से दक्षिण अफ्रीका. वर्ष 2010 से पहले इस समूह को BRIC कहा जाता था, मगर 2010 में इस समूह में साउथ अफ्रीका के जुडने के बाद से अब इस समूह को BRICS कहा जाता है. इस समूह में शामिल ये वो देश हैं जो वर्ष 2050 तक विनिर्माण उद्योग, सेवाओं और कच्चे माल के प्रमुख सप्लायर बन जाएंगे.
कैसे बना था ब्रिक्स?
ब्रिक्स की स्थापना जून 2006 में हुई थी. साल 2009 में रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में पहला ब्रिक्स सम्मेलन आयोजित किया गया था.
इसका उद्देश्य क्या है?
इस समूह का उद्देश्य है, समूह में शामिल देशों में शिक्षा में सुधार करना, विकसित और विकासशील देशों के बीच में सामंजस्य बनाए रखना, आपसी देशों के अंदर राजनीतिक व्यवहार बना के रखना, दूसरे देशों के साथ आर्थिक मदद और सुरक्षा का व्यवहार बना के रखना, देशों के अंदर विवादों का निपटारा करना और एक दूसरे देश की सांस्कृतिक रक्षा करना.
क्यों विश्व के कई देश इसका हिस्सा बनना चाहते हैं?
ब्रिक्स का मुख्यालय चीन के शंघाई में है. ब्रिक्स के सम्मेलन हर साल आयोजित होते हैं और इसमें सभी पांच सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्ष शामिल होते हैं. इस साल इस बैठक की मेजबानी साउथ अफ्रीका कर रहा है. ब्रिक्स देशों का वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में हिस्सा लगभग 30% है. ब्रिक्स देशों के समूह में जुडने के लिए अल्जीरिया, अर्जेंटीना, बहरीन, मिस्र, इंडोनेशिया, ईरान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ने अपने आवेदन दिए हैं. वहीं, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, बेलारूस, कजाकस्तान, मैक्सिको, निकारागुआ, नाइजीरिया, पाकिस्तान, सेनेगल, सूडान, सीरिया, थाइलैंड, ट्यूनीशिया, तुर्की, उरुग्वे, वेनेजुएला और जिम्बाब्वे ने भी इस समूह की सदस्यता में अपनी रुचि दिखाई है.
विश्व के ये देश इस समूह का हिस्सा इसलिए बनना चाहते हैं क्योंकि ये सभी देश ब्रिक्स को पारंपरिक पश्चिमी शक्तियों के प्रभुत्व वाले वैश्विक निकायों के विकल्प के रूप में देख रहे हैं, उन्हें उम्मीद है कि इस समूह की सदस्यता से उन्हें विकास, बढ़े हुए व्यापार और निवेश के लाभ मिलेंगे.