भारत अंतरिक्ष के क्षेत्र में तेजी से प्रगति कर रहा है. मंगल हो या चांद, हर जगह भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानि इसरो झंडे गाड़ रहा है. जल्द ही चंद्रयान-3 चांद को फतह कर लेगा. इन सब उपब्लधियों के पीछे जिसने आधारशिला रखी थी, वह हैं महान वैज्ञानिक विक्रम साराभाई.
12 अगस्त 1919 को गुजरात के अहमदाबाद में जन्में विक्रम साराभाई को इंडियन स्पेस प्रोग्राम का पितामह माना जाता है. साराभाई ने भारत को स्पेस रिसर्च के क्षेत्र में नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया और इस क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश की उपस्थिति दर्ज कराई.
विक्रम साराभाई इंटरमीडिएट की पढ़ाई भारत में करने के बाद उच्च शिक्षा के लिए इग्लैंड गए और कैम्ब्रिज से ट्राइपोज की डिग्री हासिल की. डिग्री लेने के बाद विक्रम भारत वापस आए और यहां पर रिसर्च शुरू कर दी. उनकी लगन को देखते हुए सरकार ने 1962 में उनकी अध्यक्षता में भारत के अंतरिक्ष प्रोग्राम यानी इसरो की स्थापना की. उस वक्त इसरो में ना तो ज्यादा वैज्ञानिक थे और ना ही संसाधन ऐसे में मात्र एक रुपये की सैलरी लेकर उन्होंने बाकी का पैसा इसरो को विकसित करने में लगा दिया. इसके बाद अंतरिक्ष में रॉकेट भेजने का काम शुरू हुआ.
डॉक्टर होमी जे. भाभा उनके करीबी दोस्त थे. 1966 में जब उनकी मौत हुई, तो विक्रम साराभाई को सरकार ने परमाणु ऊर्जा विभाग के अध्यक्ष का पद दिया. 1966 में ही साराभाई को पद्म भूषण से सम्मानित किया गया. 1972 में उन्हें मरणोपरांत पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया भारत के परमाणु कार्यक्रम में उन्होंने अहम भूमिका निभाई.
30 दिसंबर 1971 को विक्रम साराभाई केरल के थुम्बा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन यानी टीईआरएलएस में होने वाली एक कॉन्फ्रेन्स में हिस्सा लेने गए थे. जहां सिर्फ 52 साल की उम्र में ही उनका निधन हो गया.
उनके सम्मान में तिरुवनंतपुरम में टीईआरएलएस और संबंधित अंतरिक्ष प्रतिष्ठानों का नाम बदलकर विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र कर दिया गया. वैसे तो इसरो ने विक्रम साराभाई के नाम पर कई रॉकेट लॉन्च किए, लेकिन सबसे खास है-चंद्रयान 3. इस मिशन में चंद्रमा पर जो लैंडर भेजा गया है, उसका नाम विक्रम रखा गया है.