‘टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी, अंतर की चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी, हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा, काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूं, गीत नया गाता हूं… गीत नया गाता हूं.’ इस प्रेरणादायक कविता के रचयिता और भारत के पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी की आज पांचवी पुण्यतिथि है. आज ही के दिन यानी 16 अगस्त 2018 में लंबी बीमारी के बाद उनका निधन हो गया. भारत के पूर्व प्रधानमंत्रियों में लोकप्रियता के शिखर को छूने वाले किसी का नाम प्रमुखता से आता है तो वह अटल बिहारी वाजपेयी का है.
अटल जी के नाम राजनीति में कई अटूट रिकॉर्ड दर्ज हैं. 25 दिसंबर 1924 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर में जन्मे अटल जी को छात्र जीवन से ही राजनीतिक गतिविधियों में गहरी रुचि रही. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पण्डित दीनदयाल उपाध्याय से राजनीति का पाठ पढ़ने वाले अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में से एक थे. पहली बार 1957 में जनसंघ के टिकट पर बलरामपुर से लोकसभा के लिए चुने गए. अटल जी के लिए सबसे बड़ा मौका तब आया, जब इमरजेंसी के बाद 1977 में मोरारजी देसाई की सरकार बनी. अटल बिहारी वाजपेयी को विदेश मंत्री बनाया गया. विदेश मंत्री के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा को हिंदी में संबोधित किया और भारत का मान पूरी दुनिया में बढ़ाया. वे देश के प्रधानमंत्री, विदेशमंत्री और लंबे समय तक संसद में नेता प्रतिपक्ष भी रहे.
पंडित नेहरू के बाद वे देश के पहले प्रधानमंत्री थे जो लगातार दूसरी बार पीएम के पद पर काबिज हुए थे. उनकी छवि ही ऐसी थी कि उनकी विरोधी पार्टी के नेता तक उनका लोहा मानते थे. वे हमेशा एक ओजस्वी और प्रभावी वक्ता रहे. उन्होंने आपातकाल के कारण देश की बिगड़ रही छवि को सुधारने का काम भी बखूबी किया. इसके बाद उन्होंने 1980 में अपने सहयोगी नेताओं के साथ भारतीय जनता पार्टी की स्थापना की और उसके पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बने.
अटल जी 1980 से 1990 के दशक में राममंदिर के मुद्दे पर पार्टी की छवि बिगाड़ने वाली कोशिशों को बड़ी कुशलता से नाकाम कर देते थें. 1998 उनका ही कौशल था कि परमाणु परीक्षण पर बिगड़ी छवि के बाद भी उन्होंने पाकिस्तान से बातचीत की पहल कर दुनिया को बताया कि भारत शांति के लिए कितना गंभीर है. कारगिल युद्ध में अटलजी की ही विदेश नीति थी कि पाकिस्तान को हार का भी सामना करना पड़ा और वैश्विक स्तर पर अकेला भी पड़ गया. 1999 में उन्होंने चुनावी सभाओं में बिहार से अलग राज्य झारखंड की उठ रही मांग को पूरा करने वादा किया और चुनाव जीतने के बाद 2000 में उसे पूरा भी किया था. अटल जी ऐसे नेता थें जिन्होंने 1957 के लोकसभा चुनाव में लोगों से अपने विरोधी राजा महेंद्र प्रताप को विजयी बनाने की मांगा की थी.