बिहार के गया जिले में स्थित गुरपा पर्वत एक ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल है. यह पर्वत खासतौर पर बौद्ध धर्म से जुड़े धार्मिक मान्यताओं के लिए लोकप्रिय है. इसे गुरुपद गिरि और कुक्कुट पद के नाम से भी जाना जाता है. यह पर्वत घने जंगल, हरे-भरे मैदान और कई ऐतिहासिक गुफाओं से घिरा हुआ है. यह पर्वत झारखंड की सीमा से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. सूर्योदय और सूर्यास्त के समय यहां का नजारा देखने लायक होता है.
गुरपा पहाड़ी पर गुरुपद नामक एक मंदिर है, जहां भगवान विष्णु के पदचिह्न हैं. ऐसा भी माना जाता है कि बौद्ध धर्म के एक प्रमुख अनुयायी- महाकश्यप यहां ध्यान लगाने आए थे और इसी पर्वत पर समाधि ले ली थी. महाकश्यप भगवान बुद्ध के प्रमुख शिष्यों में से एक थे. हिंदू और बौद्ध दोनों धर्मों के श्रद्धालुओं के बीच गुरपा पर्वत बेहद खास माने जाते हैं. गुरपा पर्वत की ऊंचाई लगभग 365 मीटर है, श्रद्धालु 1800 सीढ़ियां चढ़कर यहां दर्शन करने पहुंचते हैं.
गुरपा पर्वत का इतिहास
गुरपा पर्वत का इतिहास बौद्ध धर्म के प्रारंभिक युग से जुड़ा हुआ है. ऐसा माना जाता है कि भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण (मृत्यु) के बाद उनके प्रमुख शिष्य महाकश्यप ने गुरपा पर्वत पर स्थित एक गुफा में ध्यान किया था. उनका एक ही उद्देश्य था, शरीर को समाधि में स्थापित कर भविष्य में मैत्रेय (भगवान बुद्ध के अगले अवतार) के आगमन का इंतजार करना. कथाओं के अनुसार महाकश्यप जैसे ही समाधि में गए वैसे ही पर्वत की चट्टानें अपने आप खुलीं और वह उसमें समा गए. इसके बाद पर्वत बंद हो गया. माना जाता है कि आज भी महाकश्यप गुरपा पर्वत के भीतर जीवित अवस्था में हैं और मैत्रेय के आगमन का इंतजार कर रहे हैं.
पौराणिक कथा
गुरपा हिल से जुड़ी लोककथा के अनुसार, यहां भगवान विष्णु के पदचिह्न मौजूद हैं. मान्यता ये है कि जब भगवान विष्णु वामन अवतार (भगवान विष्णु के पांचवे अवतार) में त्रिविक्रम रूप धारण कर तीन पग में सारा ब्रह्मांड नापने चले थे, तब उनके एक पग का स्पर्श गुरपा पर्वत पर हुआ था. पर्वत की चोटी पर एक विशाल पदचिह्न आज भी मौजूद है. श्रद्धालु मानते हैं कि इस पदचिह्न के दर्शन से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है.
गुरपा पर्वत में प्रमुख आकर्षण केंद्र
महाकश्यप की गुफा- गुरपा पर्वत पर एक गुफा है जिसे महाकश्यप गुफा कहा जाता है. गुफा के अंदर का वातावरण अत्यंत शांत, ठंडा और ध्यान के अनुकूल है. आज भी ये स्थान ध्यान साधना और तपस्या के लिए आदर्श माना जाता है. यहां बैठकर ध्यान लगाने से मानसिक शांति और आध्यात्मिक का अनुभव होता है. इसी गुफा में महाकश्यप ने जीवित समाधि ली थी. गुफा तक पहुंचने के लिए काफी चढ़ाई करनी पड़ती है.
भगवान विष्णु जी के पदचिह्न- गुरपा हिल पर स्थित भगवान विष्णु के पदचिह्न श्रद्धालुओं के लिए आस्था और भक्ति का प्रतीक हैं. पगचिन्ह एक विशाल चट्टान पर उकेरे हुए है. चिह्नों में उंगलियों (अंगूठे और पंजों) की आकृति भी हल्की-सी उभरी हुई दिखाई देती है. पैरों के निशान के चारों तरफ पूजा-अर्चना के लिए एक छोटा मंदिरनुमा स्थल बनाया गया है. प्रतिदिन यहां दीपक, फूल और चंदन से पूजा की जाती है. इसके अलावा खास अवसर जैसे वैष्णव पर्व, कार्तिक मास, और अमावस्या पर विशेष पूजा, दीपदान और भजन-कीर्तन आयोजित किए जाते है. ऐसा कहा जाता है कि केवल चरणचिह्न के दर्शन मात्र ही पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग खुलता है.
प्राकृतिक सौंदर्य और हरियाली- पर्वत की सुंदरता और हरियाली मन को मोह लेने वाली है. 1,500 फीट की ऊंचाई पर बसा यह पर्वत नेचर लवर और तीर्थयात्रियों दोनों के लिए यह आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. घने जंगलों से घिरा ये पहाड़ सूर्योदय और सूर्यास्त के समय दृश्य काफी अद्भुत होता है. पर्वत की चढ़ाई करने के दौरान रास्ते में जगह-जगह विश्राम करने की भी व्यवस्था की गई है.
गुरपा हिल पर कहां-कहां से आते हैं सैलानी?
गुरपा हिल पर न केवल भारत के विभिन्न राज्यों से, बल्कि विदेशों से भी सैलानी यहां पर आते हैं. बौद्ध धर्म के अनुयायी थाईलैंड, श्रीलंका, म्यांमार, जापान, चीन, नेपाल, दक्षिण कोरिया और पश्चिमी देश (यूएस, यूके, ऑस्ट्रेलिया) से ध्यान, शोध और अनुभव करने यहां आते हैं.

कैसे पहुंचे गुरपा पर्वत?
रेल, सड़क और हवाई मार्ग द्वारा गुरपा पर्वत पहुंचा जा सकता है. गया जिले से 45 किलोमीटर दूर गुरपा गांव स्थित है. पास में ही एक छोटा गुरपा रेलवे स्टेशन भी है. हवाई मार्ग के लिए गया में अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा का भी विकल्प है. सड़क मार्ग के लिए गया शहर से डोभी तक पहुंचना होगा. डोभी, एक प्रमुख चौराहा है जहां से सड़क गुरपा गांव की ओर जाती है.