जहां बुद्ध को ज्ञान मिला, बुद्धत्व की रौशनी प्रज्वलित हुई, जहां आत्मा को भी मौन की अनुभूति होती है, ऐसा पावन स्थल है बोधगया. बिहार राज्य में स्थित बोधगया न केवल ऐतिहासिक दृष्टिकोण से, बल्कि आध्यात्मिक दृष्टि से भी अत्यंत खास है. बोध गया पटना से लगभग 100 किमी दूर गया जिला से सटा हुआ एक छोटा सा शहर है. बोध गया को दुनिया के सबसे पवित्र शहरों में से एक माना जाता है. क्योंकि यहां भगवान बुद्ध ने बोधि वृक्ष के नीचे कठोर तपस्या कर ज्ञान की प्राप्ति की थी. इसी कारण उन्हें बुद्ध के नाम से जाना जाने लगा.
वर्ष 2002 में, यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थलों में शामिल किया. बोधगया में श्रीलंका, थाईलैंड, जापान, तिब्बत, भूटान, म्यांमार और कोरिया जैसे कई देशों के बौद्ध मठ और मंदिर हैं. यहां हर वर्ष देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु ध्यान, पूजा और धर्मशिक्षा के लिए आते हैं. दलाई लामा समेत विश्वभर के बौद्ध धर्मगुरु नियमित रूप से यहां आते रहते हैं. बोधगया में कई प्राचीन मंदिर और पर्यटन स्थल है, जिसके बारे में हम बताने जा रहे हैं….
बोधगया का इतिहास
सिद्धार्थ गौतम 29 वर्ष की उम्र में सांसारिक मोह-माया त्यागकर सत्य की खोज में उरुवेला (बोधगया) पहुंचे थे. बोधगया का प्राचीन नाम उरुवेला था. यहां वे पीपल वृक्ष के नीचे 49 दिनों तक ध्यानमग्न रहे. अंतत: उन्हें ज्ञान (बोधि) की प्राप्ति हुई, जिसके बाद से उन्हें गौतम बुद्ध के नाम से जाना गया. पीपल वृक्ष आज भी मौजूद है, जिसे बोधि वृक्ष कहा जाता है. ऐसा कहा जाता है कि महाबोधि मंदिर में स्थापित बुद्ध की प्रतिमा इसी अवस्था में हैं, जैसे उन्होंने तपस्या की थी.
सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म अपनाने के बाद बोधगया की यात्रा की थी. उन्होंने बोधि वृक्ष के पास वज्रासन की स्थापना की. इसके अलावा उन्होंने महाबोधि स्तूप, महाबोधि मंदिर, शिलालेख और कई स्तंभ भी स्थापित किए. गुप्त वंश ने महाबोधि मंदिर को भव्य रूप में विकसित किया.
बोधगया में मुख्य आकर्षण केंद्र
बोधगया में बोधि वृक्ष, महाबोधि मंदिर, थाई मठ जैसे कई आकर्षण स्थल हैं:
1. महाबोधि मंदिर: यह मंदिर एक अत्यंत पवित्र और ऐतिहासिक मंदिर है. यह वही स्थान है, जहां गौतम बुद्ध ने बोधि वृक्ष के नीचे बैठकर ध्यान लगाया था. इस मंदिर को बौद्ध धर्म का हृदयस्थल भी कहा जाता है. तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में सम्राट अशोक ने इस पवित्र स्थल पर एक स्तूप और मंदिर बनवाया था. महाबोधि मंदिर की ऊंचाई लगभग 55 मीटर है. मंदिर की दीवारों पर बुद्ध के जीवन से जुड़े नक्काशीदार चित्र, ध्यान मुद्रा की मूर्तियां और प्रार्थना चक्र बने हैं. इसके अंदर बुद्ध की विशाल प्रतिमा है, जिसमें वे बोधि मुद्रा में हैं. यहां दुनिया भर से लाखों अनुयायी ध्यान, पूजा और साधना के लिए आते हैं.
2. बोधि वृक्ष: यह वही पवित्र पीपल का वृक्ष है जिसके नीचे गौतम बुद्ध ने तपस्या कर ज्ञान अर्जित किया था. यह वृक्ष पूरी मानवता के लिए आध्यात्मिक जागरण और आत्मबोध का प्रतीक है. बोधि’ शब्द का अर्थ है “ज्ञान”, इसलिए इस वृक्ष को “बोधि वृक्ष” कहा गया. बौद्ध अनुयायी इस वृक्ष की पूजा करते हैं और इसके नीचे ध्यान लगाते हैं. बोधि वृक्ष को देखने, छूने और उसके नीचे बैठने से एक अलग प्रकार की ऊर्जा और शांति की अनुभूति होती है. वृक्ष महाबोधि मंदिर के ठीक पीछे स्थित है.
3. थाई मठ: इस मठ में सोने की पॉलिश की गई छतें, नुकीले गुम्बद, और मूर्तियाँ है, जो सफेद सीमेंट, मिट्टी और एपॉक्सी पेंट से बनी हैं. 1956 में थाई सरकार ने जवाहरलाल नेहरू के अनुरोध पर इस मठ को बनवाया था.
4. रॉयल भूटानी मठ: यह मठ भूटान के राजा द्वारा बनवाया गया था. ये भूटानी वास्तुकला और मूर्तिकला का शानदार उदाहरण है. मुख्य कक्ष में गौतम बुद्ध की एक भव्य प्रतिमा स्थापित की गई है. यहां भूटान भिक्षु खासकर बुद्ध पूर्णिमा और लोसार (भूटानी नववर्ष)से आकर पूजा और ध्यान लगाते हैं.
5. बुद्ध की ऊंची प्रतिमा: महात्मा बुद्ध प्रतिमा भारत में बुद्ध की सबसे ऊंची प्रतिमा में से एक है. ये मूर्ति 80 फिट बलुआ पत्थर (sandstone) और लाल ग्रेनाइट से बनी हुई है. इसकी संरचना 1989 में दलाई लामा द्वारा की गई थी.
6. जापानी मंदिर: यह मंदिर इंडो-जापानी बुद्ध मंदिर से जाना जाता है. इसे लकड़ी के नक्काशीदार और लाल-सफेद रंग की संयोजित दीवारें पारंपरिक जापानी शैली से बनाई गई है. अंदर एक सुनहरे रंग का बुद्ध प्रतिमा है. मंदिर में बड़ा जापानी घंटा है जिसे शांति की कामना के लिए बजाया जाता है. यहां जापान से प्रतिवर्ष हजारों श्रद्धालु आते हैं, खासकर बुद्ध पूर्णिमा और कालचक्र उत्सव के अवसर पर.
7. आर्कियोलॉजिकल म्यूजियम: बोध गया में एक पुरातात्त्विक संग्रहालय भी है. जिसमें बौद्ध धर्म और प्राचीन भारतीय इतिहास में रुचि रखने वालों के लिए ये खजाने से कोई कम नहीं है. 1956 में इसकी स्थापना की गई थी. संग्रहालय में पत्थर की मूर्तियां, टेराकोटा की वस्तुएं, धातु सामग्री, विष्णु के दशावतार की मूर्तियां, प्राचीन अभिलेख और शिलालेख, सिक्के-मुद्रा और मंदिर से प्राप्त कोपिंग पत्थर जैसे कई ऐतिहासिक वस्तुएं संजोई गई हैं.

बोध गया में पर्यटकों की संख्या (2023–2024)
पर्यटन मंत्रालय के आंकड़े बताते है कि वर्ष 2024 (जनवरी–अप्रैल) में भारतीय पर्यटकों की संख्या 8,49,724 थी. वहीं, विदेशी पर्यटकों की संख्या 47,823 थी. वर्ष 2023 (जनवरी–दिसंबर) के आंकड़ों पर नजर डालें तो, भारतीय पर्यटकों की संख्या 19,60,909 थी और विदेशी पर्यटकों की संख्या 87,899 थी. इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि 2024 के पहले चार महीनों में ही बोध गया ने 2023 की तुलना में पर्यटकों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई.
कैसे पहुंचें बोध गया?
पर्यटक हवाई मार्ग, रेल मार्ग और सड़क मार्ग के जरिए यहां आ सकते हैं. गया अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा बोध गया से लगभग 12 किमी दूर स्थित है. दिल्ली, कोलकाता और वाराणसी जैसे कई राज्यों से घरेलू उड़ानें मिलती हैं. इसके अलावा यहां से थाईलैंड, श्रीलंका, भूटान, नेपाल आदि देशों के लिए अंतरराष्ट्रीय उड़ानें उपलब्ध हैं.
बोध गया से लगभग 16 किमी दूर पर गया जंक्शन रेलवे स्टेशन है. देश के प्रमुख शहरों से यहां आसानी से आ सकते हैं. यहां से बोध गया तक टैक्सी, ऑटो और लोकल बसें आसानी से मिल जाती हैं.
सड़क मार्ग के लिए पटना, राजगीर और वाराणसी से नियमित बस सेवाएं उपलब्ध हैं. बिहार राज्य सड़क परिवहन निगम (BSTRC) और निजी ऑपरेटरों की बसें संचालित होती हैं. टैक्सी और कैब सर्विस भी आसानी से मिल जाती हैं.