नालंदा, एक ऐसा नाम जो जलकर भी नहीं जला, लेकिन एक जगमगाता हुआ भविष्य बनकर उभरा. कभी इसी धरती पर किताबें जलाई गई थीं, लेकिन आज इसी धरती पर फिर से पन्ने पलटे जा रहे हैं, कलमें चल रही हैं, और विचार फिर से आकार ले रहे हैं. बिहार के नालंदा विश्वविद्यालय में एक समय बौद्ध शिक्षा के साथ-साथ गणित, तर्कशास्त्र, आयुर्वेद, ज्योतिष और दर्शन का भी केंद्र था. यहां ज्ञान के लिए चीन, तिब्बत, कोरिया, जापान और श्रीलंका से छात्र आते थे. कहा जाता है एक समय पर यहां 10,000 छात्र और 2,000 शिक्षक रहते थे. इस विश्वविद्यालय को 12वीं शताब्दी में आक्रमणकारी बख़्तियार खिलजी ने नष्ट कर दिया और पुस्तकालय को आग लगा दी. ऐसा कहा जाता है कि 3 महीने तक पुस्तकालय जलाता रहा. लेकिन 2010 में भारत सरकार ने नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम” पारित कर इसके पुनर्निर्माण की शुरुआत की. 19 सितंबर 2014 में नया विश्वविद्यालय का पुनर्निर्माण किया गया.
नालंदा विश्वविद्यालय की खासियत
नालंदा विश्व का पहला आवासीय विश्वविद्यालय था. यह विश्वविद्यालय लगभग 30 एकड़ से ज्यादा क्षेत्रफल में फैला हुआ एक विशाल शिक्षा का केंद्र था. इसमें 300 कमरे, 7 बड़े कक्ष और अध्ययन के लिए 9 मंजिला एक विशाल पुस्तकालय था. यहां किसी समय 10 हजार से ज्यादा छात्र पढ़ते थे और 1500 से अधिक शिक्षक पढ़ाते थे. यहां छात्रों का चयन उनकी काबिलीयत के आधार पर किया जाता था. सबसे खास बात यह है कि यहां पर शिक्षा, रहना और खाना सभी मुफ्त था.
इतिहासकार बताते हैं कि सातवीं सदी में चीनी भिक्षु ह्वेनसांग ने भी यहां से शिक्षा ग्रहण की थी. ह्वेनसांग ने अपनी किताबों में नालंदा विश्वविद्यालय की भव्यता की व्याख्या की थी. नालंदा में बौद्ध दर्शन, वेद, व्याकरण, तर्कशास्त्र, गणित, आयुर्वेद, ज्योतिष, संस्कृत साहित्य जैसे विषयों की पढ़ाई होती थी. यहां भगवान बुद्ध ने शांति और ध्यान का मार्ग दिखाया, भगवान महावीर ने मौन में मोक्ष का संदेश दिया, और नागार्जुन, आर्यभट्ट, धर्मकीर्ति जैसे महाज्ञानी आचार्यों ने बौद्धिक क्रांति की मशाल जलायी. सबसे खास बात यह थी कि इस विश्वविद्यालय में नौ मंज़िला विशाल पुस्तकालय था, जिसका नाम धर्मगंज हुआ करता था. धर्मगंज पुस्तकालय तीन मुख्य इमारतों में विभाजित था, जिसमें रत्नसागर (ज्ञान का समुद्र), रत्नरंजक (आकर्षक रत्नों जैसा ज्ञान) और रत्नोदधी (ज्ञान का गहरा महासागर). इन इमारतों में 9 लाख से अधिक पांडुलिपियां थीं. इसमें संस्कृत, पालि, तिब्बती, चीनी जैसी विभिन्न भाषाओं में ग्रंथ थे. शोध और अध्ययन के लिए इनका नियमित उपयोग होता था.
नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास
5वीं शताब्दी के प्रारंभ में नालंदा यूनिवर्सिटी की स्थापना गुप्त सम्राट कुमारगुप्त प्रथम द्वारा की गई थी. यह विश्वविद्यालय न केवल भारत बल्कि पूरे एशिया का प्रथम आवासीय विश्वविद्यालय है. इस विश्वविद्यालय में कई महान लोगों ने पढ़ाई की थी. ऑक्सफोर्ड, कैम्ब्रिज से भी 600 साल पहले नालंदा विश्वविद्यालय बना था. हर्षवर्धन और पाल शासकों ने भी बाद में इसे संरक्षण दिया। उस समय इस विश्वविद्यालय कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, ईरान, ग्रीस और मंगोलिया जैसे देशों से छात्र पढ़ने आते थे. ज्यादातर छात्र बौद्ध भिक्षु होते थे, जो ज्ञान की प्राप्ति के लिए यहां आते थे.
नालंदा विश्वविद्यालय में खिलजी ने क्यों लगाई आग?
बख्तियार खिलजी एक कट्टर मुस्लिम आक्रमणकारी था. इतिहासकारों के अनुसार एक समय बख्तियार खिलजी बहुत ज्यादा बीमार पड़ गया. उसके हकीमों के उपचार के बावजूद भी कोई फायदा नहीं हुआ. तब उसे नालंदा विश्वविद्यालय के आयुर्वेद विभाग के प्रमुख आचार्य राहुल श्रीभद्रजी से इलाज कराने का सुझाव दिया था. खिलजी ने आचार्य राहुल को बुलाया और शर्त रखी कि वह हिंदुस्तानी दवाई का सेवन नहीं करेगा. साथ ही उसने कहा कि अगर वह ठीक नहीं हुआ तो आचार्य की हत्या करवा देगा.
अगले दिन आचार्य उसके पास कुरान लेकर गए और कहा कि आप रोज इसे पढ़िए, इसके बाद आप ठीक हो जाएंगे. आचार्य ने अपनी सूझ-बूझ से कुरान के कुछ पृष्ठों के कोनों पर एक औषधीय लेप दिया. इसके बाद खिलजी ने पृष्ठ पढ़ते-पढ़ते थूक से पृष्ठों को चाटा और दवा शरीर में पहुंच गई, जिससे वह स्वस्थ हो गया. लेकिन इसके बाद खिलजी खुश होने के बजाय गुस्सा हो गया. उसे लगा कि इन भारतीय वैद्यों का ज्ञान मेरे हकीमों से श्रेष्ठ हो सकता है. इसके बाद 1199 ई. में बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय में आग लगवा दी, जहां 3 महीने तक लाखों पुस्तकों से भरी लाइब्रेरी ‘धर्मगंज’ महीनों तक जलती रही. साथ ही हजारों भिक्षुओं, शिक्षकों और विद्यार्थियों की बड़ी बेरहमी से हत्या कर दी. लेकिन 2014 में एक नया नालंदा विश्वविद्यालय बनकर उभरा. वर्तमान में यह 455 एकड़ में फैला हुआ है.
नया नालंदा विश्वविद्यालय
पीएम मोदी ने 19 जून 2024 में नालंदा विश्वविद्यालय के नए कैंपस का उद्घाटन किया. वर्तमान में यहां 26 देशों के छात्र विभिन्न कोर्सो में पढ़ाई कर रहे हैं. विश्वविद्यालय में पीजी, पीजी डिप्लोमा, पीएचडी और शाॅर्ट टर्म कोर्स उपलब्ध हैं.
नए कैंपस का निर्माण 1 हजार 750 करोड़ रुपए की लागत से किया गया है. 455 एकड़ में फैला यह विश्वविद्यालय पूरी तरह से इको-फ्रेंडली और सस्टेनेबल डिज़ाइन किया गया है. साथ ही वॉटर री-साइकलिंग प्लांट लगाया गया है. परिसर में अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त दो एकेडमिक ब्लॉक है. यहां कुल 40 क्लासरूम हैं, जहां 1900 छात्रों के बैठने की व्यवस्था है. ऑडिटोरियम में 300 लोगों के बैठने की क्षमता है. इसके अलावा छात्रों और शिक्षकों की सुविधा के लिए फैकल्टी क्लब और खेल परिसर भी बनाया गया है.