बिहार अपनी समृद्ध संस्कृति और परंपराओं के लिए जाना जाता है. यहां होली सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि सांस्कृतिक उत्सव की तरह मनाई जाती है. बिहार में हर क्षेत्र की अपनी अनोखी होली परंपराएं हैं, जो इसे खास बनाती हैं. मगध, मिथिला, भोजपुर और सीमांचल हर जगह होली के रंग अलग-अलग होते हैं. आइए जानते हैं एक-एक कर सभी होली मनाने की अलग-अलग परंपरा को….
मगध की ‘बुढ़वा मंगल’
बिहार के मगध क्षेत्र में होली के बाद ‘बुढ़वा मंगल’ मनाने की परंपरा है. इस दिन लोग हंसी-मजाक, लोकगीत और भोज का आनंद लेते हैं. इसे बुजुर्गों के सम्मान और समाज में मेल-जोल बढ़ाने के दिन के रूप में मनाया जाता है.
समस्तीपुर की ‘छाता पटोरी’ होली
समस्तीपुर में ‘छाता पटोरी’ होली का चलन है, जहां लोग छातों और पटोरियों (बांस से बनी छोटी टोकरी) के साथ होली खेलते हैं. इसमें लोकगीतों की धुन पर लोग नाचते-गाते हैं और एक-दूसरे को रंग लगाते हैं.
मिथिला की ‘बनगांव होली’ और ‘झुमटा होली’
मिथिला क्षेत्र में ‘बनगांव होली’ प्रसिद्ध है. इस होली में लोकगीतों और पारंपरिक नृत्यों का आयोजन किया जाता है. वहीं, ‘झुमटा होली’ में महिलाएं झुंड में इकट्ठा होकर पारंपरिक गीत गाती हैं और नृत्य करती हैं. यह होली रंगों के साथ संगीत और भक्ति का अद्भुत संगम होती है.
कुर्ता फाड़ होली: लालू यादव की खास पहचान
बिहार में ‘कुर्ता फाड़ होली’ की खास पहचान रही है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के प्रमुख लालू प्रसाद यादव हैं. दिल्ली के राजनीतिक गलियारों तक उनकी कुर्ता फाड़ होली की चर्चा होती थी. कहा जाता है कि लालू यादव अपने समर्थकों और विधायकों के कुर्ते फाड़ देते थे और उनके भी कुर्ते फाड़े जाते थे. यह परंपरा मस्ती, मजाक और आपसी प्रेम का प्रतीक मानी जाती थी.