बिहार, जो कभी गंगा, ज्ञान और गीता की भूमि रही है, वहां शक्ति की आराधना का भी विशेष महत्व है. इस पवित्र भूमि पर माता सती से जुड़े कई शक्तिपीठ स्थित हैं, जहां भक्तगण मां की कृपा प्राप्त करने दूर-दूर से आते हैं. प्रत्येक शक्तिपीठ की अपनी अलग मान्यता और पौराणिक कथा है, जो इसे अन्य मंदिरों से अलग बनाती है. आइए जानते हैं बिहार के प्रमुख शक्तिपीठों के बारे में, जो भक्तों को आध्यात्मिक ऊर्जा और चमत्कारी अनुभूति प्रदान करते हैं.
पटन देवी शक्तिपीठ
बिहार की राजधानी पटना में स्थित पटन देवी मंदिर शक्ति उपासना का प्रमुख स्थल माना जाता है. देवी भागवत और तंत्र चूड़ामणि के अनुसार, मां सती की दाहिनी जांघ यहीं गिरी थी, जिससे यह स्थान शक्तिपीठों में प्रमुख बन गया. नवरात्रि के दौरान यहां भारी भीड़ उमड़ती है. यहां मां महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती की दिव्य प्रतिमाएं विराजमान हैं. पटन देवी के दो रूप हैं – बड़ी पटन देवी और छोटी पटन देवी. छोटी पटन देवी को नगर रक्षिका भगवती पटनेश्वरी भी कहा जाता है. यहां हर शुभ कार्य के बाद श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए अवश्य आते हैं.

मां शीतला मंदिर
बिहारशरीफ से पश्चिम एकंगरसराय मार्ग पर स्थित शीतला माता मंदिर एक प्राचीन शक्तिपीठ है, जिसकी मान्यता दूर-दूर तक फैली हुई है. लोककथाओं के अनुसार, जब भगवान विष्णु ने माता सती के शरीर के टुकड़े किए थे, तब मघरा गांव में उनके हाथ का कंगन गिरा था. यही कारण है कि इसे शक्तिपीठों में गिना जाता है और इस मंदिर की महिमा विशेष मानी जाती है. यहां माता शीतला की पूजा विशेष रूप से रोगों से मुक्ति और स्वास्थ्य लाभ के लिए की जाती है. श्रद्धालुओं का मानना है कि मंदिर में जल चढ़ाने से कई प्रकार के रोगों से छुटकारा मिलता है, खासकर चेचक और त्वचा संबंधी बीमारियों में माता का विशेष कृपा मिलती है. बसंत पंचमी और नवरात्रि में यहां विशाल मेले लगते हैं. दूर-दूर से श्रद्धालु यहां जल चढ़ाने और दर्शन करने आते हैं.

मां मंगला गौरी शक्तिपीठ
बिहार के गया-बोधगया मार्ग पर स्थित भस्मकूट पर्वत पर स्थित मां मंगला गौरी मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि श्रद्धा और आस्था का प्रतीक है. यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है, जहां माता सती का स्तन गिरा था. दिर तक पहुंचने के लिए भक्तों को 115 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं, जिससे श्रद्धालु इसे एक तपस्या की तरह मानते हैं. मान्यता है कि जो भी सच्चे मन से यहां पूजा करता है, मां मंगला गौरी उसकी सभी इच्छाएं पूर्ण करती हैं. श्रावण मास और नवरात्रि में यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है.

मां चामुंडा शक्तिपीठ
बिहार के नवादा-रोह-कौआकोल मार्ग पर स्थित रूपौ गांव में स्थित चामुंडा मंदिर एक प्राचीन शक्तिपीठ है. मान्यता है कि यहीं माता सती का सिर गिरा था, इसलिए यह स्थान शक्ति उपासना के प्रमुख केंद्रों में से एक माना जाता है. मार्कंडेय पुराण के अनुसार, जब मां दुर्गा ने चंड और मुंड नामक राक्षसों का वध किया, तब वे चामुंडा कहलाईं. इस मंदिर को मां चामुंडा का निवास माना जाता है, जहां उनकी अद्भुत शक्ति और करुणा का आशीर्वाद मिलता है. हर मंगलवार को विशेष पूजा और हवन का आयोजन होता है, जिसमें हजारों श्रद्धालु शामिल होते हैं.

मां चंडिका देवी शक्तिपीठ
मुंगेर जिले में स्थित चंडिका स्थान एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ है, जहां माता सती की दाहिनी आंख गिरने की मान्यता है. शक्ति उपासना के इस पवित्र स्थल को नेत्रदानी देवी का धाम भी कहा जाता है, क्योंकि यहां आंखों के रोगों से पीड़ित लोग विशेष पूजा-अर्चना करने आते हैं. मां चंडिका, देवी दुर्गा का उग्र और शक्तिशाली स्वरूप हैं, जिन्हें संकटनाशिनी और इच्छापूर्ति करने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है. लोक मान्यता है कि जो भक्त सच्चे मन से माता की उपासना करते हैं, उनकी सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं. मंदिर में आने वाले श्रद्धालु विशेष रूप से नेत्र रोगों से मुक्ति और जीवन में सुख-समृद्धि की कामना करते हैं.

उग्रतारा शक्तिपीठ
सहरसा जिले में स्थित महिषी प्रखंड का उग्रतारा स्थान राज्य के प्रसिद्ध सिद्धपीठों में से एक माना जाता है. यह मंदिर न केवल शक्ति उपासना का केंद्र है, बल्कि ज्ञान, तंत्र साधना और दर्शन के लिए भी विशेष महत्व रखता है. महिषी वह स्थान है जहां आदि शंकराचार्य का शास्त्रार्थ मंडन मिश्र की पत्नी विदुषी भारती से हुआ था. इस ऐतिहासिक वाद-विवाद में आदि शंकराचार्य को पराजित होना पड़ा, जिससे यह स्थल ज्ञान और दर्शन के क्षेत्र में भी प्रसिद्ध हो गया. उग्रतारा, नील सरस्वती और एकजटा, तीनों स्वरूपों में मां भगवती यहां विराजमान हैं. मान्यता है कि बिना उग्रतारा के आदेश के कोई भी तंत्र-सिद्धि पूर्ण नहीं होती. इसलिए, तंत्र-साधना करने वाले साधक नवरात्रि में विशेष रूप से अष्टमी के दिन यहां एकत्र होते हैं. पूरे वर्ष यहां श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है.

मां अंबिका भवानी शक्तिपीठ
छपरा-पटना मुख्य मार्ग पर स्थित आमी गांव में मां अंबिका भवानी का शक्तिपीठ श्रद्धालुओं की अटूट आस्था का केंद्र है. यह मंदिर विशेष रूप से इसलिए अद्भुत है क्योंकि यहां कोई मूर्ति स्थापित नहीं है, बल्कि इसे मां सती के जन्मस्थान और उनके अंतिम विश्राम स्थल के रूप में माना जाता है. माना जाता है कि देवी सती का जन्म यहीं हुआ था और यह स्थान उनका अंतिम विश्राम स्थल भी बना। यह शक्तिपीठ बिहार, उत्तर प्रदेश और नेपाल के भक्तों के लिए विशेष आस्था का केंद्र है.
मंदिर में मूर्ति न होने के बावजूद यहां की ऊर्जा और शक्ति भक्तों को दिव्य अनुभूति कराती है.

मां ताराचंडी शक्तिपीठ
रोहतास जिले में स्थित कैमूर पहाड़ी की गुफाओं में मां ताराचंडी का पवित्र मंदिर विराजमान है. यह शक्तिपीठ देश के 51 प्रमुख शक्तिपीठों में से एक माना जाता है, जहां हर साल हजारों श्रद्धालु माता के दर्शन करने आते हैं. मान्यता है कि देवी सती की आंखें इस स्थान पर गिरी थीं, जिससे यह स्थान शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध हुआ. यहां मां ताराचंडी के अलावा मुंडेश्वरी माता की काले रंग की मूर्ति और अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां भी स्थापित हैं. कहा जाता है कि इस मंदिर की ऊर्जा अत्यंत चमत्कारी है और जो भक्त यहां सच्चे मन से प्रार्थना करता है, उसकी हर इच्छा पूर्ण होती है. यह मंदिर सिर्फ आस्था का केंद्र ही नहीं, बल्कि प्राकृतिक सौंदर्य और रहस्यमयी गुफाओं के कारण भी प्रसिद्ध है.
