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Chandra Shekhar Azad Death Anniversary 2025: देशभक्ति की मिसाल, संघर्ष से मिली ‘आजाद’ की पहचान, जानिए अमर सेनानी की गौरवगाथा

भारत को आजाद कराने के लिए कई स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी जिंदगी न्यौछावर कर दी थी. उन्हीं महान स्वतंत्रता सेनानियों में एक नाम 'चंद्रशेखर आजाद' का है. हालांकि, इनका असली नाम चंद्रशेखर तिवारी था, लेकिन 'आजाद' इनकी पहचान कैसे बनी, इसके पीछे भी एक कहानी है.

Nikita Jaiswal by Nikita Jaiswal
Feb 27, 2025, 11:35 am GMT+0530
Chandra Shekhar Azad Death Anniversary

Chandra Shekhar Azad Death Anniversary

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भारत को आजाद कराने के लिए कई स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी जिंदगी न्यौछावर कर दी थी. उन्हीं महान स्वतंत्रता सेनानियों में एक नाम ‘चंद्रशेखर आजाद’ का है. हालांकि, इनका असली नाम चंद्रशेखर तिवारी था, लेकिन ‘आजाद’ इनकी पहचान कैसे बनी, इसके पीछे भी एक कहानी है. आजाद कहते थे, “दुश्मन की गोलियों का हम सामना करेंगे, हम आजाद हैं और आजाद ही रहेंगे.”

चंद्रशेखर आजाद का प्रारंभिक जीवन

चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के भाबरा गांव (अब अलीराजपुर जिला) में हुआ था. उनका बचपन संघर्षों से भरा था, लेकिन बचपन से ही उनमें देशभक्ति की भावना प्रबल थी. पढ़ाई से ज्यादा चंद्रशेखर का मन खेल-कूद और अन्य गतिविधियों में लगता था. 1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड ने उन्हें झकझोर दिया. उस समय वे बनारस में पढ़ाई कर रहे थे. इस घटना के बाद उन्होंने ठान लिया कि वे ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष करेंगे. जब 1921 में महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन की शुरुआत की, तो मात्र 15 साल की उम्र में चंद्रशेखर ने इसमें भाग लिया और पहली बार जेल गए. जब उन्हें मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया, तो उन्होंने अपना नाम ‘आजाद’, पिता का नाम ‘स्वतंत्रता’ और निवास स्थान ‘जेल’ बताया. तभी से उन्हें ‘चंद्रशेखर आजाद’ कहा जाने लगा.

क्रांतिकारी गतिविधियों में योगदान

चंद्रशेखर आजाद शुरू से ही अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों के खिलाफ थे. वे रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) में शामिल हुए और काकोरी कांड (1925) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. यह वह घटना थी, जिसमें क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश सरकार का खजाना लूटकर आजादी की लड़ाई के लिए धन जुटाने का प्रयास किया.

काकोरी कांड के बाद जब रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्ला खान और अन्य क्रांतिकारियों को फांसी दे दी गई, तो चंद्रशेखर आजाद ने संगठन की जिम्मेदारी संभाली और इसे ‘हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन’ (HSRA) के रूप में पुनर्गठित किया. भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव जैसे युवा क्रांतिकारी उनके नेतृत्व में काम करने लगे.

चंद्रशेखर आजाद की बलिदानी

27 फरवरी 1931 को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क (अब चंद्रशेखर आजाद पार्क) में अंग्रेजों ने उन्हें घेर लिया. उन्होंने वीरतापूर्वक अंग्रेजों का मुकाबला किया और कई अंग्रेज सैनिकों को मार गिराया. जब उनके पास अंतिम गोली बची, तो उन्होंने उसे खुद पर चला लिया, ताकि वे कभी भी अंग्रेजों के हाथों पकड़े न जाएं.

चंद्रशेखर आजाद की विरासत

आज भी चंद्रशेखर आजाद का नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान नायकों में गिना जाता है. उनकी शहादत ने लाखों युवाओं को प्रेरित किया और आज भी वे देशभक्ति का प्रतीक हैं. उनकी वीरता, बलिदान और दृढ़ संकल्प हमें सदा प्रेरित करते रहेंगे.

“हम आजाद थे, आजाद हैं और आजाद ही रहेंगे!”

Tags: Chandra Shekhar AzadChandra Shekhar Azad Death AnniversaryChandra Shekhar Azad Death Anniversary 2025MAIN NEWS
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