पंडित दीनदयाल उपाध्याय एक प्रखर राजनीतिक विश्लेषक होने के साथ आर्थिक चिंतक और साहित्यकार के रूप में खास पहचान बनाई. आज उनकी पुण्यतिथि मनाई जा रही है. उपाध्याय का जुड़ाव कई सालों तक राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से भी रहा. साथ ही भाजपा के भाजपा की स्थापना के दौरान पार्टी में उनके विचार मार्गदर्शक की तरह रहे हैं. उनका जीवन की प्रेरणा से कम नहीं है, आज उनके जीवन की खास प्रेरक घटनाओं के बारे में बताने जा रहे हैं.
पंडित दीन दयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितंबर 1916 को उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के चंद्रभान गांव में हुआ था. इसी दिन को समर्पण दिवस के रूप में मनाया जाता है. उनके पिता के वाम भगवती प्रसाद उपाध्याय और माता रामप्यारी थी. मगर शुरुआती जीवन में ही केवल 3 साल की उम्र में पिता और 7 साल में मां रामप्यारी के निधन के उन्हें झकझोर के रख दिया. इन कठिनाइयों के बाद भी पढ़ाई का साथ नहीं छोड़ा. प्रारंभिक शिक्षा लेने के बाद दीन दयाल उपाध्याय के कानपुर के सनातन धर्म मंदिर में दाखिला लिया. साल 1937 में वो बलवंत महाशब्दे से मिलने के बाद आरएसएस से जुड़ गए.
अपने संघ के सफर के दौरान ही उनकी मुलाकात भारत रत्न नानाजी देशमुख और भाऊराव देवराज से हुए जिन्होंने उनके जीवन को बदले में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. 21 अक्टूबर 1951 में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की अध्यक्षता में उनके समय भारतीय जनसंघ की स्थापना हुई थी. साल 1052 से लेकर 1967 तक वे भारतीय जनसंघ के महामंत्री बने रहे.
पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने ही अंत्योदय का नारा दिया था, उनका कहना था कि अगर हम एकता चाहते हैं तो इसके लिए राष्ट्रवाद को समझना होगा और इस विचार को अपने अंदर लाना होगा. इसके अलावा पं दीन दयाल उपाध्याय एक पत्रकार भी थे, उनके द्वारा लिखी गई कई पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन किया गया. साथ ही राष्ट्रधर्म का प्रकाशन किया, इसके साथ ही उन्होंने हिंदुत्व की विचारधारा का प्रचार-प्रसार भी किया.
11 फरवरी को पं. दीन दयाल उपाध्याय का शव रेलवे ट्रेक के किनारे मिला, इसे लेकर बताया जाता है कि वो जौनपुर तक जिंदा रहे इसके बाद किसी ने उन्हें चलती ट्रेन से धक्का मार दिया था.