नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज संसद पर हुए आतंकी हमले की 23वीं बरसी पर अपना सर्वोच्च बलिदान करने वाले जवानों को श्रद्धांजलि अर्पित की. श्रद्धा सुमन अर्पित करने वालों में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे, लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा, किरेन रिजिजू और और अन्य नेता शामिल हैं.
13 दिसंबर 2001 को दिल्ली पुलिस के कांस्टेबल जगदीश, मातबर, कमलेश कुमारी, नानक चंद और रामपाल, दिल्ली पुलिस में हेड कांस्टेबल ओम प्रकाश, बिजेंद्र सिंह और घनश्याम तथा सीपीडब्ल्यूडी के माली देशराज ने आतंकवादी हमले के दौरान संसद की रक्षा करते हुए अपने प्राणों का बलिदान दिया था.
संसद पर आतंकी हमले की कहानी
आज ही के दिन 13 साल पहले 13 दिसंबर 2001 को आतंकियों ने लोकतंत्र के मंदिर पर हमला किया था. उस दौरान संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा था. महिला आरक्षण विधेयक पर बहस के बाद सदन की कार्यवाही 11 बजे तक स्थगित हो गई थी. तत्कालीन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी और विपक्षी नेता सोनिया गांधी सदन से अपने आवास के लिए रवाना हो गए थे लेकिन लालकृष्ण आडवाणी, प्रमोदी महाजन सहित कई नेता सदन के भीतर ही थे.
11 बजकर 30 मिनट का समय था, तत्कालीन उपराष्ट्रपति कृष्णकांत के अंगरक्षक उनका इंतजार कर रहे थे. उसी टाइम एक सफेद रंग की एंबेसडर कार गेट-नंबर 12 से अंदर एंट्री करती है. कार के ऊपर गृह मंत्रालय का फर्जी स्टीकर लगा हुआ था. इस कार में 5 आंतकी थे और हथियारों का जखीरा था. जब कार आगे बढ़ी तो सुरक्षाकर्मी कार के पीछे दौड़े. इसी दौरान आंतकियों की कार उपराष्ट्रपति की गाड़ी से टकरा गई. आतंकवादियों ने अंधाधुंध गोलीबारी करना शुरू कर दिया. आतंकियों के पास एके-47, पिस्टल और हैंड ग्रेनेड थे, जबकि उस वक्त सिक्योरिटी गार्ड निहत्थे हुआ करते थे. गोलियां की आवाज सुनकर सीआरपीएफ की बटालियन एक्टिव हो गई. उपराष्ट्रपति कृष्णकांत के सिक्योरिटी गार्ड्स और सुरक्षाकर्मियों ने पलटवार किया. आनन-फानन में सभी गेट बंद कर दिए गए. संसद में मौजूद सभी मंत्री, सांसद और अधिकारियों को भीतर ही सुरक्षित रहने के लिए कहा गया.
एक आतंकी ने गेट नंबर-1 से संसद में घुसने की कोशिश की तो सुरक्षाकर्मियों ने उसे वहीं ढेर कर दिया. इसी दौरान उसके शरीर पर लगा बम फट गया. अब सुरक्षाकर्मी आतंकियों को मुंहतोड़ जवाब देने लगे. लोकतंत्र का मंदिर जंग का मैदान बन गया था. अन्य चार आतंकियों ने गेट नंबर-4 से सदन में घुसने की कोशिश की तो तीन को सुरक्षाकर्मियों ने मार गिराया. एक आतंकी, गेट नंबर 5 की ओर दौड़ा तो सुरक्षाकर्मियों ने उसे गोली मार दी. साढ़े चार घंटे तक यह मुठभेड़ चलती रही.
अफजल गुरू को दी गई फांसी
दिल्ली पुलिस ने इस आतंकी हमले की जांच की और मालूम हुआ कि यह हमला लश्कर और जैश-ए-मोहम्मद आतंकियों ने किया था. इस हमले के मास्टर माइंड अफजल गुरू को गिरफ्तार किया गया साथ ही उसके साथी एसएआर गिलानी, अफशान गुरु और शौकत हुसैन को गिरफ्तार कर लिया था.
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद गिलानी और अफशान को बरी कर दिया, जबकि अफजल गुरु को फांसी की सजा सुनाई. शौकत हुसैन की मौत की सजा को घटाकर 10 साल की जेल की सजा दी और 9 फरवरी 2013 को अफजल गुरु को दिल्ली की तिहाड़ जेल में फांसी पर लटका दिया गया.