पटना: राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और सिवान के बाहुबली सांसद रहे मोहम्मद शहबुद्दीन को नाक में दम करने वाले धाकड़ आईपीएस अधिकारी और बिहार के पूर्व पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) डीपी ओझा का निधन हो गया. डीपी ओझा कुछ समय से बीमार चल रहे थे. स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से पीड़ित ओझा भारतीय पुलिस सेवा की नौकरी से वीआरएस लेने के बाद से पटना में ही रह रहे थे.
पूर्व डीजीपी डीपी ओझा की शख्सियत तब भी राजनीति से जुड़ी हुई थी जब वह पुलिस सेवा में थे. वैचारिक रूप से वह वाम दल के साथ थे. उनकी पुलिसिया शख्सियत को तब काफी नाम मिला जब उन्होंने तत्कालीन राजनीति के सिरमौर लालू प्रसाद की एक नहीं सुनते हुए मो. शहाबुद्दीन के लिए जेल का दरवाजा खोला.
नतीजतन लालू प्रसाद यादव से जो करीबी थी वह भी टूटी और उन्हें लालू प्रसाद का कोपभाजन बनना पड़ा. दो माह पहले ही उन्हें डीजीपी के पद से हटा दिया गया. उस दौर में लालू यादव रैलियों में कहा करते थे कि हमने डीपी ओझा का बोझा बांध दिया है. ओझा 1967 बैच के आईपीएस थे और 01 फरवरी, 2003 को डीजीपी का पदभार ग्रहण किया था.
डीपी ओझा ने डीजीपी बनते ही बिहार के सबसे बड़े बाहुबली माने जाने वाले और लालू यादव के खासमखास रहे शहाबुद्दीन पर कार्रवाई की थी. सिवान स्थित उनके ठिकानों पर छापेमारी उस समय हुई जब बिहार में सरकार राजद की थी लेकिन डीपी ओझा ने शहाबुद्दीन नकेल कसने के लिए सबसे बड़ा अभियान चलाया था. यह शहाबुद्दीन के खिलाफ वर्ष 1990 में लालू यादव के बिहार की सत्ता में आने के बाद बिहार पुलिस द्वारा की गई सबसे बड़ी कार्रवाई थी. डीपी ओझा की सख्ती के बाद से ही शहाबुद्दीन का विकट काल भी शुरू हुआ था.
डीजीपी से हटाए जाने के बाद भारतीय पुलिस सेवा में दीर्घकालिक सफल करियर बिताने वाले डीपी ओझा ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली थी. इसके बाद उन्होंने सियासत के मैदान में हाथ आजमाया लेकिन सफल नहीं हुए. डीपी ओझा ने 2004 में भूमिहार बहुल बेगूसराय लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा लेकिन उनकी जमानत जब्त हो गई. उन्हें 6000 से भी कम वोट मिले थे। उस चुनाव में जदयू के ललन सिंह ने बड़ी जीत हासिल की थी और उनके मुकाबले में कांग्रेस की कृष्णा शाही दूसरे नम्बर पर रही थी.
हिन्दुस्थान समाचार