ऑल इंडिया मुस्लिम पसर्नल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष खालिद सैफुल्लाह रहमानी वक्फ बोर्ड संशोधन बिल 2024 के विरोध में तर्क दे रहे हैं कि कोई आदमी जामा मस्जिद के दस्तावेजी साक्ष्य मांगे तो क्या 400-500 साल पहले बनी इमारत के दस्तावेज दिखाए जा सकते हैं..? लेकिन सैफुल्लाह इस पर क्या कहेंगे कि जब तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली में 1500 साल प्राचीन सुंदरेश्वर मंदिर मामले में एक आदमी 1.2 एकड़ जमीन बेचने गया तो उसे वक्फ की जमीन कैसे बता दिया..? फिर पूरा गांव वक्फ की संपत्ति कैसे घोषित हो गया…?
केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक 2024 पेश कर दिया है. पक्ष-विपक्ष की सहमति के बाद जेपीसी का गठन भी हो चुका है. जेपीसी ने पहली दो बैठकों के बाद आमजन से वक्फ बोर्ड संशोधन अधिनियम को लेकर राय मांगी है. कहने का तात्पर्य यह है कि वर्ष 1995 में वक्फ एक्ट में बदलाव किया गया था और प्रत्येक राज्य/केन्द्र शासित प्रदेशों में वक्फ बोर्ड बनाने की अनुमति दी गई थी. अब वक्फ बोर्ड संशोधन अधिनियम 2024 में कुल 44 संशोधन हैं. 63 एडिशन भी अतिरिक्त जोड़े गए हैं. कुल मिलाकर 1995 के सेक्शन 40 को हटाया जा रहा है. जो खामियां 2014 से 2024 तक 1995 के एक्ट के बारे में रह गई हैं, उनके विषय में कांग्रेस शासनकाल में भी कई कमेटियां स्पष्ट रूप से अभिमत व्यक्त कर चुकी है. फिर 1976 में वक्फ जांच रिपोर्ट में भी बदलाव का बड़ा सुझाव आया था, क्योंकि वक्फ बोर्ड से जुड़ी संपत्तियों के ऑडिट और अकाउंट का तरीका सही नहीं था. वक्फ संपत्ति का प्रबंधन व्यवस्थित तरीके से हो, इसकी मांग न केवल केन्द्र-राज्य सरकारें, बल्कि मुस्लिम समाज का एक बड़ा तबका भी करता रहा है. हर किसी को मालूम है कि वक्फ बोर्ड की संपत्तियों पर गिने-चुने 200-250 लोगों का कब्जा है. वक्फ संपत्ति के बंदरबांट का खेल दशकों से चल रहा है.
वक्फ बोर्ड संपत्ति में सिर्फ बड़ी-बड़ी मस्जिदें, दरगाह, कब्रिस्तान ही नहीं हैं, बल्कि वे प्राचीन स्मारक भी शामिल हैं, जिनका रखरखाव लंबे समय से केन्द्र सरकार का पुरातत्व विभाग करता रहा है. फिर दिल्ली में जामा मस्जिद के इमाम बुखारी किस तरह से 2000 करोड़ से अधिक के मालिक बन गए या फिर उप्र में आजम खान ने स्वयं का विश्वविद्यालय खोलकर वक्फ जमीन पर एकतरफा कब्जा जमा लिया या कहें कि हैदराबाद में ओवैसी भाइयों ने किस तरह से वक्फ संपत्तियों पर मालिकाना हक में परिवर्तन कर लिया है. यह किसी से छुपा नहीं है. अब अगर केन्द्र सरकार संशोधन विधेयक के जरिए यह चाहती है कि किसी भी तरह की सार्वजनिक या धर्मविशेष की संपत्ति की निगरानी क्यों नहीं होनी चाहिए.., जब हिन्दुओं के बड़े-बड़े मंदिरों और संस्थानों पर प्रशासक के रूप में कलेक्टर, कमिश्नर बैठे हैं… फिर वक्फ संपत्ति कलेक्टर-कमिश्नर के निगरानी दायरे से बाहर क्यों रहे..? मूल अधिनियम में अब वक्फ संपत्तियों के सर्वे के लिए सर्वे कमिश्नरों की नियुक्ति का प्रावधान है.., संशोधन विधेयक में कलेक्टर-डिप्टी कलेक्टर ही सर्वे कमिश्नर होगा, इससे नीचे पद वाले व्यक्ति को हस्तक्षेप की जिम्मेदारी नहीं दी जाएगी. मतलब वक्फ में जमीन की जादूगरी का खेल खत्म होगा.
भारत के बड़े शहरों से लेकर गांवों तक में वक्फ संपत्ति की निगरानी कुछ गिने-चुने लोग करते हैं. जिसकी बंदरबांट भी वे अपने व्यक्तिगत स्वार्थों के लिए करने से नहीं चूक रहे हैं. अरबों रुपये की वक्फ संपत्ति पर वक्फ के लोगों ने ही अवैध कब्जा करवाकर औने-पौने दामों में या तो बेच दी है या ठिकाने लगा दिया और इसी वक्फ की आड़ में सरकारी संपत्तियों पर भी अवैध कब्जे जमाए गए हैं. 2009 तक वक्फ बोर्ड के पास 4 लाख एकड़ तक की 3 लाख रजिस्टर्ड वक्फ संपत्तियां थीं. महज 13 साल में वक्फ की जमीन दोगुनी हो गई. आज की तारीख में करीब 8 लाख 72 हजार 292 से ज्यादा अचल संपत्तियां रजिस्टर्ड हैं, जिनका एरिया करीब 9.4 लाख एकड़ है. वस्तुस्थिति कुछ और है। दरअसल 2013 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार ने 1995 के बेसिक वक्फ एक्ट में संशोधन किया और वक्फ बोर्डों को और ज्यादा अधिकार दे दिया. वक्फ बोर्डों को संपत्ति छीनने की असीमित शक्तियां देने के लिए अधिनियम में संशोधन किया गया, जिसे किसी भी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती. कुल मिलाकर वक्फ की आड़ में जमीनों के दलालों को खुली छूट दी गई. अब नए कानून में वक्फ बोर्ड को किसी भी संपत्ति को वक्फ की संपत्ति घोषित करने का अधिकार नहीं रहेगा। यह अंकुश क्यों बुरा है..?
वक्फ संपत्ति को कानून के निश्चित दायरे में क्यों नहीं लाया जा सकता? कोई भी बोर्ड हो जो कुछ करता है तो उसे कोर्ट में रिव्यू करने का प्रावधान दिया जा रहा है, तो यह गैर संवैधानिक कैसे हो गया? सालों से वक्फ बोर्ड में बैठने वाले लोग तालमेल करके ट्रिब्यूनल में फैसले देते हैं… उस फैसले को आप किसी कोर्ट में चैलेंज नहीं कर सकते…. सोचने वाली बात है कि क्या यह जमीनी बंदरबांट का तरीका लोकतांत्रिक है..? देश में कोई भी कानून सुपर लॉ नहीं हो सकता. फिर वक्फ बोर्ड को कानून से ऊपर कैसे रखा जा सकता है? जब अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि की जमीन का आर्कियोलॉजिकल सर्वे हो रहा था और इसमें केके मोहम्मद ने बड़ी भूमिका निभाई थी. तब किसी भी हिन्दू ने यह मांग नहीं उठाई थी कि श्रीराम जन्मभूमि का सर्वे कोई हिन्दू ही करे. मुस्लिमों का एक बड़ा वर्ग वक्फ बोर्ड में सुधार और संशोधन को एक क्रांतिकारी कदम मान रहा है. हर बोर्ड और काउंसिल में 2-2 मुस्लिम महिला सदस्य रहेंगी. इससे मुस्लिम महिलाओं के अधिकार और हस्तक्षेप सुनिश्चित होंगे. जब देश में 30 वक्फ बोर्ड की 9 लाख एकड़ से ज्यादा की संपत्ति रेलवे और सेना के बाद सबसे ज्यादा संपत्ति का मालिक है तो उसे कानूनी रूप से निगरानी तंत्र में आने में क्यों आपत्ति है..?
(लेखक, वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
शक्तिसिंह परमार
हिन्दुस्थान समाचार