कहा जाता है कि गुरु के बिना ज्ञान अधूरा रहता है. यह बात बिल्कुल सत्य है. हमारे जीवन में सबसे पहली गुरु तो मां होती है जो हमें जन्म लेते ही हर बातों का ज्ञान कराती है. मगर विद्यार्थी काल में बालक के जीवन में शिक्षक एक ऐसा गुरु होता है जो उसे शिक्षित तो करता ही है साथ ही उसे अच्छे-बुरे का ज्ञान भी कराता है. पहले के समय में तो छात्र गुरुकुल में शिक्षक के पास रहकर वर्षों विद्या अध्ययन करते थे. उस दौरान गुरु अपने शिष्यों को विद्या अध्ययन करवाने के साथ ही स्वावलंबी बनने का पाठ भी पढ़ाते थे. इसीलिए कहा गया है कि “गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाय, बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताए”. गुरु का स्थान ईश्वर से भी बड़ा माना गया है, क्योंकि गुरु के माध्यम से ही व्यक्ति ईश्वर को भी प्राप्त करता है.
हमारे जीवन को संवारने में शिक्षक एक बड़ी और महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है. सफलता प्राप्ति के लिये वो हमें कई प्रकार से मदद करते है. जैसे हमारे ज्ञान, कौशल के स्तर, विश्वास आदि को बढ़ाते है तथा हमारे जीवन को सही आकार में ढ़ालते है. कबीर दास ने शिक्षक के कार्य को इन पंक्तियो में समझाया हैः-
“गुरु कुम्हार शिष कुंभ है, गढ़ि गढ़ि काढ़ै खोट, अंतर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट”
कबीर दास जी कहते है कि शिक्षक एक कुम्हार की तरह है और छात्र पानी के घड़े की तरह. जो उनके द्वारा बनाया जाता है और इसके निर्माण के दौरान वह बाहर से घड़े पर चोट करता है. इसके साथ ही सहारा देने के लिए अपना एक हाथ अंदर भी रखता है.
शिक्षक हमें जीवन में सफलता के लिए आवश्यक ज्ञान और कौशल देते हैं. शिक्षक हमारे व्यक्तित्व को तैयार करते हैं. चरित्र को ढालने और मूल्यों को स्थापित करने में मदद करते हैं. हमें एक अच्छा नागरिक भी बनने में मदद करते हैं. शिक्षक ही है जो छात्रों को जीवन का नया अर्थ सिखाता है. वे हमें सही रास्ता दिखाते हैं और कुछ भी गलत करने से रोकते हैं. वे बाहर से देख सकते हैं. वे प्रत्येक छात्र की देखभाल करते हैं और उनके विकास की कामना करते हैं. उस छात्र को मत भूलो जो छात्र अपने शिक्षकों का सम्मान नहीं करता है. वह जीवन में कभी आगे नहीं बढ़ता है. शिक्षक छात्र के व्यक्तित्व को ढालते हैं. वे एकमात्र निःस्वार्थ व्यक्ति हैं जो खुशी-खुशी बच्चों को अपना सारा ज्ञान देते हैं.
शिक्षक विद्यार्थियो के जीवन के वास्तविक निर्माता होते हैं जो न सिर्फ हमारे जीवन को आकार देते हैं. बल्कि हमें इस काबिल बनाते हैं कि हम पूरी दुनिया में अंधकार होने के बाद भी प्रकाश की तरह जलते रहें. शिक्षक समाज में प्रकाश स्तम्भ की तरह होता है. जो अपने शिष्यों को सही राह दिखाकर अंधेरे से प्रकाश की और ले जाता है. शिक्षकों के ज्ञान से फैलने वाली रोशनी दूर से ही नजर आने लगती है. इस वजह से हमारा राष्ट्र ढ़ेर सारे प्रकाश स्तम्भों से रोशन हो रहा है. इसलिये देश में शिक्षकों को सम्मान दिया जाता है. शिक्षक और विद्यार्थी के बीच के रिश्तों को सुदृढ़ करने को शिक्षक दिवस एक बड़ा अवसर होता है.
पुराने समय में शिक्षकों को चरण स्पर्श कर सम्मान दिया जाता था. परन्तु आज के समय में शिक्षक और छात्र दोनो ही बदल गये है. पहले शिक्षण एक पेशा ना होकर एक उत्साह और एक शौक का कार्य था. पर अब यह मात्र एक आजीविका चलाने का साधन बनकर रह गया है. शिक्षक एक व्यक्ति के जीवन में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है. शिक्षक एक मार्गदर्शक, गुरु, मित्र होने के साथ ही और कई भूमिकाएं निभाते है. यह विद्यार्थी के उपर निर्भर करता है कि वह अपने शिक्षक को कैसे परिभाषित करता है. संत तुलसी दास ने इन नीचे की पंक्तियों में बहुत ही अच्छे तरीके से समझाया है.
“जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी”
संत तुलसी दास ने बताया है कि भगवान, गुरु एक व्यक्ति को वैसे ही नजर आयेंगे जैसा कि वह सोचेगा. उदहारण के लिए अर्जुन भगवान श्रीकृष्ण को अपना मित्र मानते थे. वही मीरा बाई भगवान श्रीकृष्ण को अपना प्रेमी. ठीक इसी प्रकार से यह शिक्षक के उपर भी लागू होता है. इसीलिए कहते हैं कि शिक्षक समाज का पथ प्रदर्शक होता है.
शिक्षक दिवस को स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय और शैक्षणिक संस्थानों में शिक्षक और विद्यार्थियों के द्वारा बहुत ही खुशी और उत्साह के साथ मनाया जाता है. इस दिन विद्यार्थियों से शिक्षकों को ढ़ेर सारी बधाईयां मिलती है. भारत में शिक्षक दिवस शिक्षको के सम्मान में मनाया जाता है. शिक्षक पूरे वर्ष मेहनत करते हैं और चाहते हैं कि उनके छात्र विद्यालय और अन्य गतिविधियों में अच्छा प्रदर्शन करें. शिक्षक दिवस पर पूरे देश के विद्यालयों में विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. दुनिया के एक सौ से अधिक देशों में अलग-अलग समय पर शिक्षक दिवस मनाया जाता है. भारत में भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिवस पांच सितम्बर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है. डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिवस को 1962 से शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है. उन्होंने अपने छात्रों से अपने जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने की इच्छा जताई थी.
देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉ राधाकृष्णन का जन्म पांच सितम्बर 1888 को तमिलनाडु के तिरुमनी गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. वे बचपन से ही किताबें पढ़ने के शौकीन थे और स्वामी विवेकानंद से काफी प्रभावित थे. डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक महान शिक्षक थे. जिन्होंने अपने जीवन के 40 वर्ष अध्यापन पेशे को दिया है. वो विद्यार्थियों के जीवन में शिक्षकों के योगदान और भूमिका के लिये प्रसिद्ध थे. इसलिये वो पहले व्यक्ति थे जिन्होंने शिक्षकों के बारे में सोचा और हर वर्ष 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रुप में मनाने का अनुरोध किया. उनका निधन 17 अप्रैल 1975 को चेन्नई में हुआ था.
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने 1909 में चेन्नई के प्रेसिडेंसी कॉलेज में अध्यापन पेशे में प्रवेश करने के साथ ही दर्शनशास्त्र शिक्षक के रुप में अपने करियर की शुरुआत की थी. उन्होंने बनारस, चेन्नई, कोलकाता, मैसूर जैसे कई प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों तथा विदेशों में लंदन के ऑक्सफोर्ड जैसे विश्वविद्यालयों में दर्शनशास्त्र पढ़ाया था. अध्यापन पेशे के प्रति अपने समर्पण की वजह से उन्हें 1949 में विश्वविद्यालय छात्रवृत्ति कमीशन का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था.
हर देश में इस दिवस को मनाने की तारीख अलग-अलग है. चीन में 10 सितम्बर तो अमेरिका में छह मई, ऑस्ट्रेलिया में अक्तूबर का अंतिम शुक्रवार, ब्राजील में 15 अक्तूबर और पाकिस्तान में पांच अक्तूबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है. इसके अलावा ओमान, सीरिया, मिस्र, लीबिया, संयुक्त अरब अमीरात, यमन, सऊदी अरब, अल्जीरिया, मोरक्को और कई इस्लामी देशों में 28 फरवरी को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है.
वर्तमान समय में शिक्षकों का समाज में सम्मान कम होने लगा है. बहुत से शिक्षकों की घटिया हरकतों ने उनको समाज की नजरों से गिरा दिया है. स्कूल, कालेजों में छात्र, छात्राओं के साथ शिक्षकों द्वारा नीच हरकत करने के चलते शिक्षण जैसा पवित्र कार्य बदनाम होता जा रहा है. मौजूदा दौर में शिष्य भी कुछ कम नहीं हैं. छात्रों की अनुशासनहीना के चलते स्कूल, कालेजों में शिक्षा का वातावरण समाप्त होता जा रहा है. गुरु-शिष्य को एक दूसरे की भावनाओं को समझ कर मिलजुल कर ज्ञान की ज्योति जलानी होगी. शिक्षक दिवस मनाने के साथ हमें शिक्षण कार्य की पवित्रता को फिर से बहाल करने की प्रतिज्ञा भी लेनी होगी. तभी हमारा शिक्षक दिवस मनाना सार्थक हो पाएगा.
रमेश सर्राफ धमोरा
(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं.)
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