हिमाचल प्रदेश की सुक्खू सरकार पर आर्थिक संकट का खतरा कुछ इस तरह बढ़ गया है कि विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान गुरूवार को सीएम ने एक बड़ा ऐलान किया था. उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री, मंत्री, मुख्य संसदीय सचिव, बोर्ड निगमों के चेयरमैन 2 महीने तक वेतन व भत्ता नहीं लेंगे. सीएम सुक्खू ने विधायकों से कहा था कि दो महीने के लिए वेतन-भत्ता न लें, हो सके तो एडजस्ट करें. जिसके बाद माना जा रहा था कि सितंबर महीने में कर्मचारियों का वेतन और पेंशनरों की पेशन भी नहीं दी जाएगी. जो की सच भी साबित हुई है. 1 सितंबर को रविवार था इसलिए लोगों को उम्मीद थी कि सोमवार यानी दो सितंबर को वेतन व पेंशन जारी की जाएगी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ.
बता दें कि हिमाचल प्रदेश के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि राज्य के 2 लाख कर्मचारियों को महीने की सैलरी और 1.5 लाख पेंशनर्स को पेंशन नहीं मिली. इसका कारण है राज्य में चल रहा आर्थिक संकट. जिसका सीधा प्रभाव राज्य के सरकारी कर्मचारियों और पेंशनर्स पर पड़ा रहा है. दरअसल, वर्तमान में हिमाचल प्रदेश के ऊपर लगभग 94 हजार करोड़ रुपये का भारी कर्ज है. जिससे राज्य की वित्तीय स्थिति बहुत कमजोर हो गई है. इसके कारण सुक्खू सरकार को पुराना कर्ज चुकाने के लिए नया कर्ज लेना पड़ रहा हैं. कर्मचारियों और पेंशनरों के लिए राज्य सरकार पर लगभग 10 हजार करोड़ रुपये की देनदारियां बकाया हैं. इस राशि का भुगतान न करने की वजह से सरकार को जनता की भारी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है. प्रदेश के लोगों को अभी भी सैलरी-पेंशन न मिलने के आसार दिखाई दे रहे हैं.
हालांकि इस बीच हिमाचल प्रदेश राज्य बिजली बोर्ड के कर्मचारियों की सैलरी तो आ गई, परंतु अन्य किसी का वेतन नहीं आया. बिजली बोर्ड के कर्मचारियों की सैलरी इसलिए आई क्योंकि सुक्खू सरकार से बोर्ड को पहले ही अनुदान रकम मिली थी. उसी रकम से यह सैलरी जारी की गई.
बता दें हिमाचल सरकार ने प्रदेश में ओल्ड पेंशन स्कीम लागू कर दी है. जिसके बाद हिमाचल में 1,89,466 से ज्यादा पेंशनर्स हैं, जिनके 2030-31 तक बढ़कर 2,38,827 होने की उम्मीद है. केंद्र सरकार ने कर्ज सीमा को 5 प्रतिशत से घटाकर 3.5 प्रतिशत कर दिया है, जिसका अर्थ है कि राज्य सरकार जीडीपी का केवल 3.5 प्रतिशत कर्ज के रूप में जुटा पाएगी.