रक्षाबंधन का त्योहार भाई-बहन बड़े ही धूमधाम से मनाते है. इस वर्ष ये पर्व आज यानी 19 अगस्त को मनाया जा रहा है. इस दिन बहनें अपने शुभ मुहूर्त में अपने भाइयों की कलाई में राखी बांधती हैं और साथ ही उनकी लंबी उम्र और खुशहाल जीवन की कामना करती हैं. लेकिन क्या आप जानते है कि इस त्योहार को मनाने के पीछे 10 पौराणिक मान्यताएं हैं:
1.भविष्य पुराण के अनुसार सबसे पहले इंद्र की पत्नी की पत्नी शचि ने वृतसुर से युद्ध में इंद्र की रक्षा के लिए उनके हाथों में रक्षा सूत्र बांधा था. इसलिए युद्ध से जाने से पहले उसके हाथ में मौली, कलाया या रखा सूत्र बांधकर उसकी पूजा की जाती थी. देवी लक्ष्मी ने राजा बलि को अपना भाई बनाकर हाथों में अपने पति की रक्षा के लिए ये सूत्र बांधा था और अपने बंधक पति श्रीहरि विष्णु को अपने साथ ले गई थी.
2. दूसरी कथा में ये कहा गया है कि भगवान विष्णु ने अदिति के गर्भ में वामन अवतार लिया था और ब्राह्मण के वेश में असुरराज राजा बलि के द्वारा भिक्षा मांगने पहुंचे थे। भगवान ने भिक्षा में बलि से तीन पग भूमि की मांग की। बलि ने फैरान हां कह दिया, क्योंकि तीन पग ही भूमि तो देनी थी. जब भगवान ने अपना विशालरूप प्रकट किया और दो पग में सारा आकाश, पाताल और धरती नाप लिया। फिर उन्होंने पूछा कि अब बताइए की तीसरा पग कहा रखूं? तब विष्णुभक्त बलि ने कहा, भगवान आप अपने पाव मेरे सिर पर रख लीजिए, इसके बाद भगवान ने राजा बलि को रसातर का राजा बनाकर अमरता का वरदान दे दिया.
3. भगवान को वामनावतार के बाद पुनः लक्ष्मी के पास जाना था लेकिन वे रसातल में ही बलि की सेवा में रहने लगे. इस बात से लक्ष्मी मां चिंतित हो गई. ऐसे में नारदजी ने लक्ष्मी जी को एक उपाय बताया तब लक्ष्मीजी ने राजाबली को राखी बांधा और अपने पति को वापस अपने साथ ले आईं. उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा थी। इसके बाद से ही रक्षा बंधन के त्योहार मनाया जाने लगा.
4. ऐसा माना जाता है कि राजसूय यज्ञ के दौरान जब श्रीकृष्ण ने शिशुपाल का वध कर दिया था, तो तब उनकी उंगलियों से खून बनने लगा था. इसे देखकर द्रौपदी ने अपनी साड़ी का एक टुकड़ा काटकर उनकी उंगली को बांध दिया था। इसके श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को आशीर्वाद दिया कि एक दिन मैं जरूर तुम्हारी साड़ी को कीमत अदा करूंगा. द्रौपदी की चीरहरण के दौरान श्रीकृष्ण ने ब्याज सहित इतना बढ़ाकर लौटा दिया और उनकी लाज बचा ली. इसके बाद से ही बहनों द्वारा राखी बांधने की परंपरा शुरू हो गई.
5. दक्षिण भारत में समुद्री क्षेत्रों में नारियल पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है. ये पर्व सभी मछुवारों का त्योहार होता है. मछुवारे भी मछली पकड़ने की शुरुआत इसी दिन से भगवान इंद्र और वरुण की पूजा करने से करते हैं. पूजा विधिवत तरीके से उन्हें केले के पत्तों को समुद्र किनारे नारियल अर्पित किए जाते हैं. इसलिए इस राखी पूर्णिमा को वहां नारियल पूर्णिमा के नाम से जानते है.
6. प्राचीन काल से ही राखी का त्यौहार मनाया जाता रहा है। हाथ के मूल में 3 रेखाएं होती है जिसे मणिबंध कहते हैं. इन तीन रेखाओं में दैहिक, वैदिक और भौतिक होती है. इन मणिबंधों के नाम शिव, विष्णु व ब्रह्मा हैं। इसी तरह लक्ष्मी, शक्ति और सरस्वती का वास रहता है. जब हम कलावा का मंत्र रखा हेतु पढ़कर बांधते है तो ये तीन धागों का सूत्र त्रिदेवों व त्रिशक्तियों को समर्पित हो जाता है। जिसमें रक्षा सूत्र धारण करने वाले प्राणी की सब तरीके से रक्षा होती है.
7. शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि राखी बांधने से त्रिदेव- ब्रह्मा, विष्णु व महेश तथा तीनों देवियों- लक्ष्मी, पार्वती और सरस्वती की कृपा होती है. ये मौली या राखी किसी देवी या देवता के नाम पर भी बांधी जाती है, जिससे संकटों और विपतियों से व्यक्ति की रक्षा होती है. ये मंदिर में मन्नत मांगने की लिए बांधी जाती है.
8. रक्षा सूत्र संकल्प के लिए भी बांधा जाता है, जिस तरह राजा बली ने तीन पग भूमि को दान में देने के पहले जल जोड़कर ये प्रण लिया था कि मैं तीन पग भूमि दान करता हूं. इसी तरह रक्षा बंधन में हम बहन को उनकी रक्षा करने का वचन देते हैं.
9. शास्त्रों की माने तो मौली बांधने से उसकी पवित्र और शक्तिशाली होने का अहसास होता रहता है, इससे मन में शांति और पवित्रता बनी रहती है. ऐसे में व्यक्ति के मन में बुरे विचार नहीं आते है और न ही गलत रास्तों पर भटकता है.
10. महाभारत में भी रक्षाबंधन का त्यौहार उल्लेख है। जब युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा कि मैं सभी संकटों से कैसे पार कर सकता हूं, तब कृष्ण जी ने उनको और उनकी सेना को रखी का त्यौहार मानने की सलाह दी थी.