सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम महिलाओं को लेकर आज बुधवार को अहम फैसला सुनाया है. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि मुस्लिम महिलाएं अपने पति के खिलाफ सीआरपीसी की धारा-125 के तहत भरण-पोषण के लिए कोर्ट में याचिका दायर कर सकती हैं.
जानें पूरा मामला
तेलंगाना हाई कोर्ट ने एक मुस्लिम युवक को अंतरिम तौर पर अपनी पूर्व पत्नी को गुजारा करने के लिए भरण-पोषण करने का आदेश दिया था. कोर्ट के इस आदेश को चुनौती देते हुए युवक ने फरवरी 2024 में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. युवक में अपनी याचिका में कहा था कि इस मामले में गुजारा भत्ता धारा- 125 के बजाय मुस्लिम महिला अधिनियम, 1986 के प्रावधानों द्वारा शासित होना चाहिए.
कोर्ट ने फैसले में क्या कहा
इस मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम महिला सीआरपीसी की ‘धर्म तटस्थ’ धारा-125 के तहत पति से भरण-पोषण की मांग करने का पूरा हक है. अदालत ने कहा, “एक भारतीय विवाहित महिला को इस तथ्य के प्रति सचेत होना चाहिए, जो आर्थिक रूप से स्वतंत्र नहीं है. इस तरह के आदेश से सशक्तिकरण का अर्थ है कि उसकी संसाधनों तक पहुंच बनती है. हमने अपने फैसले में 2019 अधिनियम के तहत ‘अवैध तलाक’ के पहलू को भी जोड़ा है. हम इस प्रमुख निष्कर्ष पर हैं कि सीआरपीसी की धारा-125 सभी महिलाओं (लिव इन समेत अन्य) पर भी लागू होगी, ना कि केवल विवाहित महिला पर.”
कोर्ट ने आगे यह भी कहा कि यदि सीआरपीसी के धारा 125 के तहत मामला लंबित है और मुस्लिम महिला का तलाक हो जाता है, तो वह 2019 अधिनियम की मदद ले सकती है. 2019 अधिनियम धारा 125 सीआरपीसी के अतिरिक्त उपाय प्रदान करता है.
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस नागरथन और जस्टिस जॉर्ज मसीह ने आज बुधवार को सुनवाई करते हुए कहा कि कुछ पति इस बात से नहीं हैं कि पत्नी, जो एक गृहिणी होती है लेकिन इन होम मेकर्स की पहचान भावनात्मक और अन्य तरीकों से उन पर ही निर्भर होती है.