पूर्वी चंपारण: बिहार में पूर्वी चंपारण जिले के किसानों में पिछले दो-तीन से रुक-रूक हो रही वर्षा से काफी प्रसन्नता देखने को मिल रही है. दूसरी ओर नेपाल में लगातार हो रही भारी बारिश की खबरो से बाढ़ आने की आशंका से सिहरते भी दिख रहे है. क्योंकि पूर्वी चंपारण का भगौलिक बनावट के अनुसार यह जिला नेपाल से सटे होने के साथ ही वहां से निकलने वाली तिलावे, बंगरी, दुधौरा, लालबकेया, मसान, सरिसवा, बेलोर, तीयर गाद सहित दो दर्जन से ज्यादा नदियों से घिरी हुई है.
इसके साथ ही यहां के दक्षिण पश्चिम में गंडक,उत्तर पश्चिम होकर बूढ़ी गंडक और पूर्वी भाग में बागमती नदी बहती है. इन तीनो प्रमुख नदियो का जलग्रहण क्षेत्र नेपाल ही है. ऐसे में चंपारण में बारिेश हो न हो नेपाल में बारिश होने से यहां प्रलयकारी बाढ का खतरा सदैव बरकरार रहता है. बताते चले कि बाढ़ सुरक्षा को लेकर महज गंडक नदी पर चंपारण तट बंध बना है, जबकि बागमती के पश्चिमी छोर पर आधे अधूरा तो बूढी गंडक पर तो बांध बनाने के नाम पर महज खानापूर्ति ही की गयी है. जिस कारण इन नदियों के साथ इसकी सहायक नेपाली नदियां वर्षों से तांडव मचाती आ रही है.
सबसे दुर्भाग्यपूर्ण तो यह है, कि आजादी के बाद बनी किसी भी सरकार के प्राथमिकता में बाढ़ का स्थायी समाधान नहीं रहा. बागमती और गंडक जैसी परियोजनाएं महज कागजो तक सिमट कर रह गई. बाढ़ सुरक्षा केवल कुछ एक उन बांधो पर निर्भर है, जो काफी जर्जर एवं खस्ता हालात में है. कुछ भष्ट्राचारी चूहों ने तो कुछ बरसाती चूहों ने बांध को इस कदर जर्जर बना दिया है कि हर बार कही न कही उसका टूटना लाजिमी है. जिस कारण चंपारण के पूर्वी, पश्चिमी, उत्तरी एवं दक्षिणी इलाकों में जल तांडव होता आ रहा है.
उल्लेखनीय है, कि नेपाल से चंपारण की ऊंचाई कम है, फलतः पानी नेपाल के बजाय इन सीमावर्ती भारतीय जिलों में सीधे पहुंचता है। नेपाली नदियां अतिक्रमण एवं बेहतर रखरखाव का शिकार भी हुयी है। जिस कारण पानी कम मात्रा में आये तो भी उसका फैलाव त्वरित होता है. सरकारी स्तर पर चाहे घोषणाएं जो भी हो लेकिन जमीनी स्तर पर कोई ठोस काम इस दिशा में नहीं हुआ, फलतः पिछले दिनों आयी नेपाली नदियों की वेग में जिले के बंजरिया प्रखंड में तकरीबन पन्द्रह जगह तिलावे और बंगरी नदी पर बनी तट बंध तोड़ दिया था. जिससे जिले के 21 प्रखंडों के 140 पंचायतों के तकरीबन 20 लाख से ज्यादा आबादी को सीधे प्रभावित होना पड़ा था. 45 से ज्यादा मौतें भी हुई थी. ये जल तांडव कोई नयी बात नहीं है.
किसान हरिदयाल कुशवाहा, अखिलेश सिंह, रामविनय सिंह व अभिलाष बताते है कि जिस तरह औसत से कम बारिश हो रही है, वैसे में बाढ़ आना ठीक है लेकिन बाढ का पानी तेजी से निकलना भी चाहिए, जबकि होता है इसके विपरीत है. बाढ़ का पानी रक्सौल, रामगढवा, आदापुर,बनकटवा घोड़ासहन से सीधे ढलकर सुगौली, बंजरिया, मोतिहारी सदर, चिरैया एवं पकड़ीदयाल व पताही में स्थिर हो कर कई दिनों में धीर-धीरे निकलता है. जिससे किसानों का लाखों हेक्टेयर में खड़ी फसल गलकर समाप्त हो जाती है.
एक पूर्व सरकारी पदाधिकारी बताते है कि बाढ़ का अगर स्थायी या इसके पानी का त्वरित निकासी हो जाये तो ये अरबों खरबों की कागजी लूट खसोट कैसे होगी? ऐसे में नीति नीयत की खोट की बलिबेदी पर हर साल न जाने किसानों की कितनी बर्बाद होती रहेगी. सबसे बड़ी विडंबना तो यह है कि पूर्वी चंपारण जिले के कुल 27 प्रखंडों में से 21 प्रखंडों में कमोबेश जल तांडव होता है, वही बाकी के प्रखंडों में जल के लिए त्राहिमाम यानी सुखा कहर बरपाती है. ऐसे में इस साल मौसम विभाग की जोरदार बारिश की चेतावनी और नेपाल में हो रही बारिश से जिलेवासियों का चिंतित होना जाहिर सी बात है. अगर चिंता नहीं है तो सरकार एवं सरकार के नुमाइंदों में. तो आईये फिर बारिश के साथ बाढ़ विद सेल्फी के लिए तैयार हो जाईये, क्योंकि ये सिस्टम और सरकार ऐसे ही चलता है.
हिन्दुस्थान समाचार