भारत की धरा पर जन्में वीर सपूतों की बात जब भी होती है तो वहां महाराणा प्रताप का भी नाम लिया जाता है. महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को राजस्थान के मेवाड़ में हुआ था, जिनके पिता का नाम राणा उदय सिंह और माता का नाम जयवंता बाई था. हिंदुओं के लिए हमेशा ही प्रेरणा का स्त्रोत रहने वाले प्रताप का पूरा जीवन लोगों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत रहा है जिनका जीवन हमेशा ही देश और मातृभूमि के लिए समर्पित रहा.
वीर शिरोमणि: महाराणा प्रताप
महाराणा प्रताप का जन्मदिन पूरे देश में 9 मई को बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है. हिंदू कैलेंडर के अनुसार उनका जन्म ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हुआ था. उनकी गिनती महान हिंदू सम्राटों के रूप में की जाती है जिन्होंने न केवल दुश्मन की के सामने कभी घुटने नहीं टेके बल्कि हर चुनौती का सामना भी ताल ठोक के किया. यहां महाराणा के जन्मदिन के मौके पर उनके जीवन की कुछ झलकियां बताने जा रहा हैं.
महाराणा प्रताप के जन्म 1540 में राजस्थान के मेवाड़ में हुआ था जिनके पिता उदय सिंह और माता जयवंता बाई थीं. वो राजपूत परिवार से आते थे उनकी धर्मपत्नी का नाम अजवदे पुनवार था, शादी के बाद महाराणा के दो बेटे भी हुए थे. महाराणा एक प्रतापी योद्धा होने के साथ एक कुशल शासक भी थे. उनके प्रिय घोड़े का नाम चेतक था जो कालांतर में काफी प्रसिद्ध हुआ.
कभी नहीं मानी हार
जिस वक्त मुगल भारत में अपनी जड़ें जमा रहे थे और राजा और उनकी रियासतों को अपने नीचे दबा रहे थे. ऐसे समय में भी महाराणा वीर सपूत की तरह बिना डरे डटे हुए थे. 30 सालों के संघर्ष के बाद भी उन्होंने कभी अकबर की गुलामी स्वीकार नहीं की, यही कारण था कि अकबर जीते जी कभी महाराणा प्रताण के अडिग निश्चय को हिला तक नहीं पाया.
हल्दीघाटी का युद्ध
साल 1576 में सुप्रसिद्ध हल्दीघाटी की लड़ाई मुगल बादशाह अकबर और महाराणा प्रताप के बीच लड़ी गई गई थी. जहां एक तरफ अकबर की विशाल 85 हजार सैनिकों की सेना थी तो वहीं महाराणा प्रताप के 20 हजार सैनिक सिंह की तरह डटे हुए थे. यह लड़ाई कई सालों तक चली जिसमें चोटिल होने के बावजूद भी महाराणा प्रताप कभी मुगलों के हाथ नहीं आ सके.
वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप जंगल चले गए थे जिसके बाद कई साल उन्होंने कंद-मूल खाकर वहीं गुजारे. आखिरकार अकबर को भी प्रताप को पकड़ने की इच्छा अपने दिल से निकालनी पड़ी. मुगलों से बचकर भागते समय प्रताप के घोड़े चेतक ने भी वीरता का सबूत दिया. उनकी रक्षा करते हुए ही चेतक ने 26 फीट की छलांग लगाई थी कई हैरतअंगेज कारनामे किए थे. आखिर में जान बचाते हुए घोड़े ने अपने प्राण त्याग दिए. आखिरकार 29 जनवरी साल 1597 मे 57 वर्ष की उम्र में महाराणा प्रताप ने आखिरी सांस ली.