बिहार में 7 मई को लोकसभा चुनाव के 5 सीटों पर तीसरे चरण का मतदान होना है. जिसमें से झंझारपुर, सुपौल, अररिया, मधेपुरा व खगड़िया शामिल हैं. मधेपुरा सीट की बात करें तो इस सीट को यादव की भूमी कहा जाता है. यहां आम चुनाव कुल 16 बार हुए हैं, जिसमें से शुरुआत के दो चुनाव को छोड़कर यहां सिर्फ यादव का ही कब्जा रहा है. इस सीट पर सबसे लोकप्रिय नाम राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव का है. बिहार में युवा मतदाताओं में उनकी लोकप्रियता बहुत ज्यादा है. इस सीट से राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव, जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वर्गीय शरद यादव, मंडल कमीशन के अध्यक्ष बिन्देश्वरी प्रसाद (बीपी) मंडल, पप्पू यादव जैसे दिग्गज नेता अपनी किस्मत अजमा चुके हैं. फिलहाल यहां जदयू के नेता दिनेश चंद्र यादव सांसद हैं. इस बार के चुनाव में मुख्य उम्मीदवारों में से जदयू ने दिनेश चंद्र यादव को फिर से टिकट दिया है. राजद ने प्रो. कुमार चंद्रदीप को उम्मीदवार बनाया है. बसपा ने इस बार अरशद हुसैन को मैदान में उतारा है. तो आइए जानते है इस बार का सियासी समीकरण और चुनावी इतिहास के बारे में…
मधेपुरा का चुनावी इतिहास
मधेपुरा में सबसे पहला लोकसभा चुनाव 1967 हुआ था. जिसमें संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से बीपी मंडल ने जीत दर्ज की थी . यहां कांग्रेस ने तीन बार (1971, 1980, 1984) जीत हासिल की. राजद को चार बार ( 1998, 2004, उप चुनाव 2004, 2014) जीत मिली. तीन बार जनता दल (1989, 1991, 1996), जदयू तीन बार (1999, 2009, 2019) और एक-एक बार संयूक्त सोशलिस्ट पार्टी ने जीत हासिल की है. अगर निर्दलीय उम्मीदवार की बात करें तो 1968 के उप चुनाव में बीपी मंडल सांसद बने थे.
लालू ने शरद यादव को दो बार हराया
1998 के लोकसभा चुनाव में मधेपुरा लोकसभा सीट चर्चा में आया. क्योंकी शरद यादव (जनता दल) और लालू प्रसाद (राजद) चुनाव में आमने-सामने आए थे. जिसमें लालू प्रसाद की जीत हुई. इसके बाद 2004 के चुनाव में दोनों आमने-सामने हुए. इस बार भी लालू यादव कामयाब हुए. 2019 के लोकसभा चुनाव में जदयू प्रत्याशी दिनेश चंद्र यादव ने राजद उम्मीदवार को शरद यादव को हराया था.
मधेपुरा की जातीय समीकरण
मधेपुरा लोकसभा सीट के अंतर्गत 6 विधानसभा सीट आते हैं. जिसमें सोनवर्षा विधानसभा सीट, आलमनगर, बिहारीगंज, महिषी, सहरसा और मधेपूरा विधानसभा सीट हैं. यहां कुल 16 बार के लोकसभा चुनाव में 14 बार यादव ही सांसद बने हैं. मधेपुरा में जातीय समीकरण पर नजर डालें तो यहां यादव समीकरण काम करता है. यहां यादव का संख्या अधिक है, करीब 3.3 लाख यादव और 1.8 लाख मुस्लिम हैं. बिहार की राजनीतिक में एक कहावत ‘रोम पोप का, मधेपुरा गोप का’बेहद प्रचलित है. यह पिछले कई वर्षों से बिहार की सियासत में खूब बोली और सुनी जा रही है. यहां सभी दल के नेता ने चुनाव लड़ा है. सबसे दिलचस्प बात ये है कि मघेपूरा में किसी एक दल के नेता का दबदबा नहीं रहा. इस सीट पर सभी अलग-अलग दल के यादव नेता का कब्जा रहा.
कौन और कब रहे सांसद?
वर्ष | सासंद | पार्टी |
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1967 | बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल | संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी |
1968 | बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल | स्वतंत्र (चुनाव द्वारा) |
1971 | चौधरी राजेंद्र प्रसाद यादव | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
1977 | बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल | भारतीय लोकदल |
1980 | चौधरी राजेंद्र प्रसाद यादव | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (उर्स) |
1984 | चौधरी महाबीर प्रसाद यादव | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
1989 | चौधरी रामेंद्र कुमार यादव रवि | जनता दल |
1991 | शरद यादव | जनता दल |
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