बिहार में 7 मई को लोकसभा चुनाव के 5 सीटों पर तीसरे चरण का मतदान होना है. जिसमें से झंझारपुर, सुपौल, अररिया, मधेपुरा व खगड़िया शामिल हैं. सुपौल लोकसभा सीट की बात करें तो ये 2008 के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई है. यहां पहली बार 2009 में लोकसभा चुनाव हुए हैं. इस सीट पर अब तक कुल तीन बार लोकसभा चुनाव हुए हैं. फिलहाल यहां पर जनता दल यूनाइटेड (JDU) से दिलेश्वर कामैत सांसद हैं. बिहार में एनडीए की सीटों का बंटवारा होने के बाद सुपौल सीट इस बार जदयू के कोटे में आई है. जदयू ने दिलेश्वर कमैत को उम्मीदवार बनाया है. वहीं दुसरी ओर राजद ने चंद्रहास चौपाल को टिकट दिया है. इसके अलावा प्राउटिस्ट ब्लॉक इंडिया पार्टी से रमेश कुमार आनंद, जयहिन्द पार्टी से उमेश प्रसाद साह, राष्ट्रीय जनसंभावना पार्टी से मो. कलीम खान, प्राउटिस्ट सर्वसमाज से विंदेश्वरी चुनाव मैदान में हैं. वहीं, बहुजन समाज पार्टी से किरण देवी उम्मीदवार है. यहां का चुनावी इतिहास ज्यादा पुराना नहीं है. तो आइए जानते है इतिहास और चुनावी समीकरण के बारे में…
सुपौल लोकसभा सीट का चुनावी इतिहास
2008 में सुपौल लोकसभा सीट अस्तित्व में आने के बाद यहां पहली बार 2009 में लोकसभा चुनाव हुआ. जिसमें जदयू से विश्वमोहन कुमार ने जीत हासिल की थी. विश्वमोहन कुमार ने कांग्रेस के रंजीत रंजन को मात दिया. इसके बाद 2014 के आम चुनाव में कांग्रेस से रंजीत रंजन ने बाजी मारी थी. उन्होंने जदयू के उम्मीदवार दिलेश्वर कामैत को हराया था. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में जदयू के उम्मीदवार दिलेश्वर कामैत ने कांग्रेस उम्मीदवार रंजीत रंजन को मात दी थी. आपको बता दें कि कांग्रेस नेता रंजीत रंजन बिहार के दिग्गज नेता पप्पू यादव की पत्नी हैं. पप्पू यादव इस बार निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में पूर्णिया सीट से लड़ रहे हैं.
सुपौल लोकसभा सीट का सियासी समीकरण
सुपौल लोकसभा सीट में 6 विधानसभा क्षेत्र हैं. जिसमें निर्मली विधानसभा सीट, पिपरा विधानसभा, सुपौल विधानसभा क्षेत्र, त्रिवेणीगंज आरक्षित सीट, छतरपुर विधानसभा सीट और सिंघेश्वर विधानसभा सीट शामिल हैं. 2011 की मतगणना के अनुसार सुपौल संसदीय क्षेत्र में मतदाताओं की कुल संख्या 1,279,549 है. इनमें मतदाता 6,72,904, महिला मतदाता 6,06,645 हैं. इसके चुनावी इतिहास से तो ये पता चलता है कि यहां लगातार किसी भी एक दल के उम्मीदवार ने लगातार दो बार जीत हासिल नहीं की. 2009 में एनडीए गठबंधन के तहत भाजपा और जदयू ने मिलकर चुनाव लड़ा तो जीत हासिल की. फिर 2014 में कांग्रेस व राजद ने एक साथ चुनाव लड़ा तो कांग्रेस ने बाजी मारी. 2014 में जदयू का एनडीए से गठबंधन नहीं हो सका था, इसलिए जदयू को कामयाबी नहीं मिल सकी थी. फिर 2019 में एनडीए गठबंधन ने एक साथ मिलकर चुनाव लड़ा और जदयू के उम्मीदवार दिलेश्वर कामैत सासंद बने. अगर ऐसे में ये कहा जा सकता है कि इस बार का चुनाव राजद जीत अपने नाम कर सकती है.